सामान्य शीशा कुछ नहीं छुपाता जो जैसा है वैसा ही दिखाता है.देखने वाले के मन में उस द्रश्य के प्रति कोई संशय ही नहीं रह जाता, किन्तु एक हल्का सा पर्दा भी मन में संशय पैदा कर देता है. किन्तु आज पारदर्शिता कि नितांत कमी महसूस कि जा रही है चाहे लोकतंत्र में सरकारी कामकाज कि बातें करें या फिर इंसान के चरित्र कि बात करें. सरकारी कामकाज में पारदर्शिता के अभाव के कारण ही समाज सेवी अन्ना हजारे जी को आर टी आय क़ानून लागू करने के लिए लड़ना पड़ा. इसी कानून के कारण आज कई वांछित जानकारियाँ कार्यकर्ता या जागरूक नागरिक द्वारा ली जा रही हैं.
लोकतंत्र में पारदर्शिता का काफी महत्त्व है. क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही सरकार बनाने के लिए नुमाइंदों का चयन करती है. यदि इनके चयन याने कि चुनाव प्रक्रिया यदि पारदर्शी नहीं होगी तो जनता में संशय के बीज अंकुरित होंगे. सिर्फ चुनाव ही नहीं उम्मीदवारों का भी चरित्र यदि साफ़ शीशे कि तरह पारदर्शी होगा तो जनता को वोट करने में आसानी होगी. बहुत प्रचार कि आवश्यकता नहीं रह जायेगी.पारदर्शी चरित्र का अर्थ एक ऐसे चरित्र से है जो निर्मल हो. जहां कट्टरता का नितांत अभाव हो. अभी कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल कि मुख्यमंत्री सुश्री ममता दीदी का जैसा कट्टरपंथी चरित्र देखने को मिला यह लोकतंत्र के लिए या मानवता के लिए ठीक नहीं है. मानव चरित्र इतना निर्मल होना चाहिए जैसे कि ब्लेक बोर्ड पर लिखा हुआ हो. जिसे आसानी से मिटाया जा सके तभी जीवन में नया सीखने का मार्ग प्रशस्त होगा. यदि आयल पैंट कि लकीर कि तरह हो जिसे कितना भी स्वच्छ पानी से धोते रहो कोई बदलाव नहीं होगा तो आगे बढ़ने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता.
यहाँ बात पारदर्शिता कि चल रही थी तो चरित्र भी निर्मल और पारदर्शी होना चाहिए. लोकतंत्र में सरकार का खजाना भरता है जनता के ही पैसे से, चाहे टैक्स के द्वारा वसूल किया गया हो या अन्य किसी तरह. इसलिए जनता को सरकारी खर्च कि पूरी जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए. आज हमारे देश कि वर्तमान सरकार यदि बदनाम है तो वह इसी कारण कि सरकारी कामकाज में पारदर्शिता का अभाव हो गया है. सराकर में बैठे नुमाइंदे अपनी आवश्यकताओं पर अनाप शनाप खर्च कर रहे हैं. जब कभी इनका मन होता है सब मिलकर अपने वेतन भत्तों में असंगत वृद्धि कर लेते हैं. अपनी विदेश यात्राओं पर गैर जरूरी धन खर्च करते हैं. सरकारी कामकाज में पारदर्शिता के अभाव के कारण ही आज भ्रष्टाचार अपनी चरम पर है. सिर्फ एक ही वर्ष में मंत्रियों कि संपत्ति दुगना हो जाना अपारदर्शिता का ही नतीजा है. पिछले कई दिनों से बाबा रामदेव सरकार के विरुद्ध कालाधन वापस लाने के लिए झंडा थामे देश भर में घूम रहे हैं. जबकि सरकार कालाधन के मामले में ज़रा भी पारदर्शीता नहीं बरत रही है. आज तक ना तो सरकार ने उन लोगों के ही नाम उजागर किये है जिनका कालाधन विदेशी बैंको में जमा है और ना ही आगे कि कार्यवाही पारदर्शी है. इस कारण देश कि जनता के मन में संशय होना लाजमी है कि कहीं कालेधन के सौदागरों को सरकार प्रश्रय तो नहीं दे रही है.
इसलिए अंत में यही कहूँगा कि लोकतंत्र में जनता के नुमाइंदों का कम से कम सार्वजनिक जीवन पारदर्शी होना चाहिए ताकि उनकी वही छवि सरकार के कार्य में भी दिखे.
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