For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीमापुर के सुलगते सवाल
डॉ० ह्रदेश चौधरी


लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी का महिला सुरक्षा को लेकर जो आश्वासन इस आधी आबादी को दिया गया था और उस वक़्त इस सुरक्षा की उम्मीद का दिया जितनी तेज गति से प्रज्वलित हुआ था वो उतनी ही रफ्तार से मद्धम हो गया। रेप की घटनाओं से रंगे समाचारपत्र और न्यूज़ चैनल की सनसनीखेज रिपोर्टिंग्स अब एक आम सी बात हो गयी है। कितने लोग इस घटना को अंजाम देकर कानून की गिरफ्त में आए और उनको इस वहशी हरकत पर क्या कठोरतम सज़ा मिली इस बात की जानकारी से आम जनता महरूम ही रहती है। कभी इन घटनाओं की परिणति इस रूप में भी हो सकती है कि अपराधी को कानून के शिकंजे से छीनकर जनता जनार्दन ने मौत की पटकथा लिख दी हो न ऐसा कभी सुना गया ना देखा गया। किन्तु ये परिणति हुई दीमापुर की जमीन पर, जिसमें सेंट्रल जेल को तोड़कर बलात्कार के आरोपी को इतना पीटा गया की उसकी मौत हो गयी। दीमापुर की जनता ने दिखा दिया कि ये वही दीमापुर है जो कभी महाभारत काल में हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था।

“महिलाओं पर अपराध से सिर शर्म से झुक जाता है” सरकार द्वारा मात्र इतनी टिप्पणी कर देने से ही महिलाएं महफूज नहीं हो जातीं, जरूरत है सख्त से सख्त कदम उठाने की और गंभीर मामलों पर समय रहते अपराधियों को कठोर सज़ा दिलाने की ताकि उनमे भय उत्पन्न हो सके और ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। आज चर्चा इस बात पर गर्म है कि 16 दिसम्बर 2012 को सामूहिक दुष्कर्म करने वालों के प्रति अगर सरकार ने कड़ा रुख अख़्तियार किया होता तो दीमापुर की घटना यूँ जनाक्रोश में तब्दील ना हुयी होती। यह बढ़ते यौन अपराधों के खिलाफ विद्रोही स्वर थे नीति नियंताओं की उस नाकाम व्यवस्था के लिए, जो योजनाओं को बनाने की पैरवी तो करते हें किन्तु उसका सख्ती से पालन हो इसमे उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।

जुल्म की इंतिहा जब अपनी चरम सीमा पर होती है तब दीमापुर जैसी घटनायें जन्म लेती हें इस घटना ने जहां समाज के चिंतक और विचारको के सामने कुछ सवाल खड़े किए वही सरकारी नुमाइंदों और सरकारी संगठनों को ऐसे सुलगते प्रश्नों पर सोचने पर मजबूर कर दिया, कि क्या महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में तभी कमी आएगी जब जनता दीमापुर की घटना की तरह आरोपी को स्वयं सबक सिखाये? शिवसेना ने तो यहाँ तक कह दिया कि ‘’जो घटना निर्भया से दुष्कर्म करने वालों के साथ होनी चाहिए थी वो इत्तेफाक से नागालैंड में हुयी’’। ये सच है कि ये आक्रोश था कानून की लचर व्यवस्था पर, ये सबक था सरकार के लिए, जिसमे इशारा किया गया कि जंगलराज की शुरुआत हो चुकी है, साथ ही ये खतरनाक संकेत भी है कि निर्भया के दुष्कर्मी अभी तक जिंदा क्यो हें? व्यवस्था की नाकामी का सबसे बड़ा उदाहरण क्या होगा जिसमे सार्वजनिक रूप से आरोपी को मृत्युदण्ड दिया गया हो।

नारियों को पूजने की बात करने वाले देश में दुष्कर्म के मामले पर हमारा न्यायिक तंत्र कछुआ की चाल से क्यू चलता है ये सवाल आज भी विचाराधीन है। मामला कितना भी संगीन क्यो ना हो पर जनता कभी आश्वस्त नहीं हो पाती कि दुष्कर्मी को फांसी ही होगी। एक तरफ कहा जाता है कि बेटियाँ देश की धरोहर हें और सृष्टि के मूल में बेटियाँ ही हैं वही दूसरी तरफ इस धरोहर और इस सृष्टि को महफूज करने में इतनी लापरवाही क्यो? दीमापुर की घटना पर चौतरफा एक ही स्वर सुनाई दिया ‘’अच्छा हुआ ऐसा ही होना चाहिए था’’ आखिर ये किस मानसिकता को इंगित करता है क्या हम दबे स्वर में यह कहना चाहते हें कि सरकार यदि कुछ नहीं करेगी तो हम कानून हाथ में लेकर जंगलराज कायम करेंगे। हालांकि भारतीय संविधान के लिए कानून को हाथ में लेकर इस तरह की घटना को अंजाम देना शर्मनाक ही माना जाएगा। लेकिन सवाल ये भी है कि दरिंदगी से निपटने के लिए ये जज्बा हमारी सरकार के पास क्यो नहीं है? कानूनी पेचीदगियों में उलझाकर न्यायिक व्यवस्था को इतना पंगु क्यो बना दिया गया है कि लोगों का इस पर से विश्वास उठता दिखाई देता है। शायद दीमापुर कि घटना ने सालो साल चलने वाली इस न्यायिक व्यवस्था पर चोट की है लेकिन एक सुलगता प्रश्न ये भी है कि अपराधी को सज़ा देने की इच्छाशक्ति वास्तव में हमारे अंदर है या फिर महज क्षणिक उत्तेजना में भीड़ का हिस्सा बनकर इस घटना को अंजाम दिया गया क्योकि ये उतना ही कड़वा सच है कि आज महिलाएं अपने ही घरों में रिश्तेदारों से यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हें लेकिन ऐसे मामलों के उजागर होने पर हम अपने सगे संबंधियों के साथ इस कठोरतम व्यवहार का हौसला नहीं रख पाते जैसा कि दीमापुर में हुआ वहाँ हमारी संवेदनाओं से सम्झौता करने को कौन सी अंतरात्मा हें जो ऐसा दोहरा चरित्र रखने को गवारा कर जाती है।

दीमापुर कि इस घटना ने समाज को स्पष्ट संदेश दिया है कि हालातों को समय रहते यदि नियंत्रित नहीं किया गया तो जनाक्रोश किसी भी क्रान्ति में तब्दील हो सकता है। हालाँकि इस संवैधानिक देश में आक्रोश की इस भाषा को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता किन्तु हमको इस बात से भी मुतमुईन होना पड़ेगा कि न्याय में देरी कभी भी दीमापुर जैसी घटना को अंजाम दे सकती है।

(लेखिका आराधना संस्था की महासचिव हैं)
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 489

Replies to This Discussion

ऐसी घटना की पुनरावृत्ति रोकना अत्यंत आवश्यक है।जिसके लिए सर्वप्रथम निर्भया की दोषियों को तत्काल दंड दिया जाना चाहिए।अन्यथा दीमापुर कही भी बन जायेगा।एक हैवानियत रोकने के लिए दूसरी हैवानियत शुरू हो जायेगी।कानून और संविधान किताबों में ही दबे रह जाएंगे।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service