For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“जो कुछ बोल रहे हो निःस्वार्थ भाव से ही न”

मंदिर का घंटा बजते हुए एक भद्र पुरुष  ने परमात्मा की मूरत के सामने हाथ जोड़ कर अंखे बंद कर लीं और  बड़ी तन्मयता से कुछ बुदबुदाने लगा – "हे प्रभु ! इस बार मेरा काम बन जाए मै नंगे पाँव चलकर आऊँगा सोने का छ्तर चढ़ाऊँगा , बीस भूखों को खाना खिलाऊँगा । बस इस बार मेरा काम बना दे ।" परंतु क्या वह जो बोल रहा था वह सच था बिना किसी स्वार्थ के बोला गया था या कितना काम वह सच मे कर सकता था । उसकी बातों मे कितना स्वार्थ छिपा था ।

 अपने आस पास हम अक्सर देखते है इस तरह की बातें करने वाले लगभग सभी ही है । क्या हमने कभी प्रभु से नहीं कहा होगा या नहीं कहते है । कहा भी होगा और कहते भी है लेकिन मानते नहीं । घरों मे अपने माता पिता से ,अपने भाई बंधुओं से, अपने मित्रों से , पति पत्नी से , पत्नी पति से हर जगह किसी न किसी स्वार्थ वश असत्य या मिलावटी बातों का जाल अवशय बुना गया होगा ।

मधुर वाणी मे बोलना कोई गलत बात नहीं है बल्कि यह बड़ी ही सुंदर बात है कि कोई व्यक्ति सरलता से , मधुरता से बातचीत करता है जो कानो को अच्छी लगती है ।

 " बानी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय ॥

परंतु शब्दों को मीठी चाशनी मे भिगो कर बोला गया असत्य उस समय तो लुभा सकता है किन्तु जिस पल यथार्थ सामने आता है तब जो हार्दिक चोट पहुँचती है वह कष्ट दायी होता है । अतः प्रयास ये होना चाहिए कि आपके मधुर असत्य से भी किसी को कष्ट न पहुंचे । । ऐसे भद्र लोगों के लिए कहा गया है :-

            “सत्यम् ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयात् । अप्रियम् सत्यम् न ब्रूयात् ॥" 

अर्थात :- सत्य बोलो प्रिय बोलो किन्तु अप्रिय सत्य भी मत बोलो । इस कथन से निःस्वार्थ भाव का दर्शन होता है।

इसके विपरीत कुछ कठोरता से बात करने वाले भी है जो ये कहते है कि भाई हम तो ऐसे ही बोलते है और सच बोलते है किसी को बुरा लगे तो लगा करे हमे क्या ? हमने तो भले की बात की थी ।

ऐसे लोगो को सिर्फ कठोरता से ही बात करना अच्छा लगता है या यों कहें कि उनका स्वभाव ही ऐसा होता है । ऐसे लोगों के लिए तो रहीमदास जी ने बड़ा अच्छा वक्तव्य दिया है :-

   “ खीरा मुंड उड़ाई के घिसिए नून लगाय । रहिमन कड़ुवे मुखन की होवे यही सजाय ॥“

आपने तो भले की बात की लेकिन क्या जिसके लिए बात की उस पर क्या बीती यह जानने की कोशिश की । हो सकता है आपकी बात से वह और अधिक अवसाद मे चला गया हो । यहाँ आपने कौन सा भला सोचा ? आपका भाव क्या था ? यदि आपने निःस्वार्थ भाव से कहा है और आपके कहने का गलत असर हो गया है तो तुरंत गलतफहमी को दूर कर दीजिये। यकीन मानिए आपके द्वारा ऐसा करना आपके निःस्वार्थ भावना से कहे हुए तथ्य को मजबूती प्रदान करेगा ।

 

 “ वाक्सायका वदनान्निष्पतन्ति यैराहतः शोचति रात्र्यहानि।

     परस्य ना मर्मसु ते पतन्ति तान्पंडितो नावसृजेत्परेभ्यः ॥“ (महाभारत)

अर्थात :- वचन रूपी बाण मुख से निकलते है और वे दूसरों के मर्म पर ही चोट पहुँचाते हैं, जिनसे आहत हुआ मनुष्य रात दिन शोक ग्रस्त रहता है इसलिए विद्वान व्यक्ति इनका प्रयोग दूसरों पर कदापि न करे ।

 

 

 

प्रायः हम जो भी बोलते है या कहते है सच ही है ऐसा हम खुद को समझाने के लिए कहते है लेकिन वह सब सच या सही नहीं होता है । कभी कभी हम किसी की खुशी के लिए असत्य बोलते है तो कभी अपनी खुशी के लिए । कुछ भी हो स्वार्थ के वशीभूत होकर कही गई बातें क्षणिक सुख तो दे सकती हैं परंतु  इनकी सच्चाई सामने आते ही अंतरमन पर  जो घाव लगता है जो कष्ट होता है वह केवल वही व्यक्ति समझ पाता है जो इसका शिकार हुआ हो। जिह्वा एक ऐसी दुधारी तलवार है जो यदि सही चलती है तो यह बिगड़े काम बनाती है  नही तो बन रहे कामों को बिगाड़ देती है । अच्छे खासे रिश्ते इस जिह्वा की भेंट चढ़ जाते है । इसीलिए इस जिह्वा को परमात्मा ने नुकीले दांतों के बीच रखा है ताकि इसको भी यदा कदा चोट लगती रहे ।

  किसी से अपना काम निकलवाने के लिए आज हम आप देखते है कि लोग किस कदर नीचे गिर जाते है रिश्ते नाते तक भी भूल जाते है कोई संबंध याद नहीं रहता है सिर्फ स्वार्थ का अंधापन ही बच रहता है । ऐसे लोगों से सदा सावधान रहना चाहिए ये कभी भी पीठ मे खंजर घोंप सकते है । ऐसे लोग परमात्मा तक को नहीं छोड़ते । उनके सामने जाकर बड़ा सा तिलक लगा कर ज़ोर से जयकारा लगा सोचते है बस अब तो प्रभु मेरे बस मे है मेरे पास अन्य भक्तों से बड़ा तिलक है मेरा चढ़ावा भी ज्यादा है और मेरी मन्नत भी बड़ी है इसलिए प्रभु मेरे हैं । किन्तु इस छल कपट और प्रपंच से दूर प्रभु तो उनके हृदय मे बसते  है जिनके हृदय निःस्वार्थ भाव से भरे है जो कोई भी प्रपंचना नहीं करते बस निष्काम भाव से सेवा करते है । उनके वचन का भी मोल होता है । वे बेवजह कुछ नहीं बोलते।

 

- अन्नपूर्णा बाजपेई

 

पूर्णतया मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

Views: 359

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service