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गीत

हमने जो घर-घर में देखा,

उन बातों का यही निचोड़

जीवन है इक बाधा दौड़.



चाहे कितनी करो कमाई,

सब कुछ खा जाती मंहगाई.

दस-पंद्रह दिन में चुक जाती.

एक मॉस की पाई -पाई.

ओवर-इनकम नहीं जो घर में,

इक-दूजे का माथा फोड़.

जीवन है इक बाधा दौड़.



मस्त रहें बच्चे ,धमाल में,

घर के बूढ़े अस्पताल में

घर का करता फिरकी जैसा

नाचे सबकी देख -भाल में

घर-घर बहूएँ कोंस रहीं हैं

बुढ़िया अब तो माचा छोड़

जीवन है इक बाधा… Continue

Posted on November 26, 2010 at 7:52pm — 1 Comment

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है
यार बता , तुझे कौन सा गम है

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

तेरी पलक का अश्क मैं अपने
लब पे उठा लूं , ये शबनम है.

लगता है मुझको तुझमे खुदा है ,
हंस कर बोले लोग वहम है

जिस्म तेरा या रूह हो तेरी
मेरे लिए यह दैरो- हरम है

कहना ग़ज़ल यूं मैं क्या जानू
यह तो खुदा का रहमो- करम है

आनंद तनहा

Posted on October 20, 2010 at 7:03pm — 5 Comments

मुफलिस ही रहने दो हमको

मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

जाहिद जाने रसमे -इबादत,
हमको उसके ,इश्क की आदत
जिसके नूर की एक शफक से,
रोशन दिल का कोना- कोना

इश्क- ए- खुदा हो जाने दे कामिल
उसकी नज़र में ,होकर शामिल
दिन भर रब की मैय को पीकर
रात में चादर तान के सोना

ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना

आनंद तनहा

Posted on October 18, 2010 at 7:00pm — 4 Comments

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At 5:20pm on October 1, 2010, Admin said…

 
 
 

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