अनिमिष नयनों से
वसुधा को
वह गगन निहारा करता है।
शोख पवन
छूकर अवनी को
यूँ ही इतराया करता है।
कितना बेबस!
होकर सागर…
ContinueAdded by Dharmendra Kumar Yadav on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment
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