नाम नहीं कोई पता नहीं है....
कोई भी पहचान नहीं है....
जाने किस एक शख्स ने अपने,
सहमें सहमें जज्बातों को,
बंद लिफाफे में रखकर के,
मेरे नाम से लिख भेजा है....
काश के ऐसा कोई लिफाफा
आज से पंद्रह बरसों पहले,
तुमने मुझको भेजा होता...
Added by Sudhir Sharma on February 24, 2011 at 11:30pm — 1 Comment
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