नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें
सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है
चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी
पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है
रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है
निशब्द सी धडकनें डरकर रह जाती है
जज्बात उसके सदा सहमें से लगते हैं
घरोंदे में छुपकर वह जीवन बिताती है
सिंदूर में रंग कर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 27, 2015 at 1:00am — 18 Comments
“मम्मी मैं किटी पार्टी में जा रही हूँ , आप हेमा को कह दो वह विवान को दूध दे देगी ...वैसे भी विवान मेरे पास नहीं उसी के पास रहता है |” अपने लहराते हुए बालों को झटका देते हुए फाल्गुनी ने कहा ||स्टाइल में रहना, फैशनेबल कपड़े पहनना, सहेलियों के बीच अपनी सुन्दरता की प्रशंसा सुनना, यही तो मनपसंद कार्य है फाल्गुनी का | जन्म तो दिया बच्चे को मगर ममता नहीं लुटा पाई |
इसके विपरीत हेमा जो कि अपने से अधिक चिंता करती है घर परिवार की...अपनी जेठानी के पुत्र पर जान से भी अधिक स्नेह लुटाती है मगर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 14, 2015 at 3:30pm — 14 Comments
गुनगुन करती थी सदा
वो एक लड़की ..
खिड़की से आती थी नज़र
वो एक लड़की
कभी नाचती गुड़िया संग
कभी लगाती गुलाबी रंग
बाबा के कंधों पर चढ़
दुनिया थी देखती
माँ की बाहों में झुला झूलती
समय उपरान्त
उसी खिड़की में
आई नज़र
वो एक लड़की
ले रंगबिरंगी चुनर
पूरियाँ तलती थी
बाबा को बिस्तर पर सुला
माथा सहलाती
वो एक लड़की...
बहुत दिनों से
बंद थी खिड़की
नहीं आती नजर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 8, 2015 at 12:27am — 14 Comments
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