पात्र परिचय
गोपाल - एक गरीब बालक (उम्र करीब दस साल )
जमुना - गोपाल की माँ
मुनिया - गोपाल की छोटी बहन
गुप्ता जी - प्रतिष्ठित व्यापारी
रमेश - गुप्ता जी का छोटा भाई
गोलू - गुप्ता जी का सात वर्षीय पुत्र
शामू - गुप्ता जी का नौकर
(प्रथम दृश्य)
(छोटी सी झोपड़ी में जमुना , टूटी सी चारपाई पर सो रही है , उसके पास उसकी बेटी मुनिया बैठी है )
मुनिया - माँ ! माँ ! उठो न माँ ..मुझे बहुत तेज भूख लग रही है |
जमुना - (रोते रोते ) बिटिया मैं मजबूर हूँ , कैसी अभागन हूँ कि अपनी संतानों को दो जून की रोटी भी नहीं खिला पा रही हूँ ..आह ! अब और नहीं सहा जाता यह दुःख.. मुझे ऊपर बुला ले भगवान् |
( तभी वहां गोपाल आता है )
गोपाल - मुनिया , रो मत मेरी बहन , माँ बहुत बीमार है न, इसलिए कुछ दिन से बंगले में काम करने नहीं जा सकी ...मुझे पता है मुनिया ! तूने दो दिन से कुछ भी तो नहीं खाया है |
मुनिया - लेकिन भैया आपने भी तो कुछ नहीं खाया है |
गोपाल - (प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए ) मेरी चिंता मत कर ..मुझसे पहले तू है ..मैं अभी जाता हूँ और तेरे लिए कुछ खाने को लेकर लाता हूँ |
( गोपाल वहां से सीधे उस घर में जाता है जहाँ उसकी माँ काम करती है , मगर उस घर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ देख ,वह निराश हो जाता है ...गोपाल रास्ते में कई लोगों से भीख माँगता हैं मगर हर कोई उसे दुत्कार देता है )
(दूसरा दृश्य)
( गुप्ता जी के घर में, उनकी पुत्री के विवाह की तैयारियां बड़े ही जोर शोर चल रही है
गुप्ता जी – ( चिल्लाते हुए )अरे ! रमेश , कहाँ हो तुम भई ?
रमेश – हाँ कहिये भाईसाहब ..क्या कह रहें हैं आप ?
गुप्ता जी – मेहमान आने वाले हैं ..तुम्हे कुछ पता भी है ? अरे भाई इंतजाम देखो .. |
रमेश – आप बिलकुल भी चिंता मत करिए भाईसाहब , सारे इंतजाम हो चुके हैं |
( तभी वहाँ गोपाल आ पहुँचता है | मेहमानों की दावत के लिए सजाए हुए भोजन पर उसकी निगाहें ठहर सी गई , मुनिया का रोता चेहरा उसकी आँखों के सामने आने लगा ..उसके कदम बरबस ही दावत की मेज तक पहुँच गए ..वह नीचे झुक कर चुपके से पूरियाँ उठाने की कोशिश करने लगता है तभी अचानक , गुप्ता जी की नज़र उस पर पड़ जाती है )
गुप्ता जी --( गुस्से से ) ऐ लड़के ! कौन है तू ? चोरी करने आया है ...| इन लोगों को तो हराम का माल चाहिए...शामू , इसे धक्के मार कर बाहर कर दे |
गोपाल – ( गिडगिडाते हुए ) मालिक , मालिक ...मैं चोर नहीं हूँ मालिक ..मेरी बहन भूखी है साब ..उसने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया..हम पर रहम करो साब |
( गुप्ता जी , गोपाल के हाथों से पूरी छीनकर वापस उसी स्थान पर रख देते हैं तथा उसे एक चपत भी जड़ देते हैं , गोपाल रोते रोते दया की भीख माँगता है, मगर उसकी एक नहीं सुनी जाती )
गुप्ता जी –( नौकर से ) शामू ! जल्दी इसे बाहर का रास्ता दिखा | और तू सुन ले ज्यादा पैतरे दिखाएगा तो जेल की हवा खिलाने में मुझे जरा भी वक्त नहीं लगेगा ..समझा कि नहीं |
( गोपाल को धक्के मार कर घर से बाहर कर दिया जाता है , वह रो रहा है मगर उसका रुदन संगीत की तेज आवाजों में कही दब सा जाता है |
(तभी वहाँ गुप्ता जी का पुत्र गोलू आ जाता है , उसके हाथ में भोजन की थाली लगी हुई थी )
गुप्ता जी – ( बड़े ही स्नेह से ) अरे मेरे लाल ..खाना नहीं खाया अभी तक ?
गोलू – पापा ! मेरा पेट भर चुका है ..माँ है कि जबरदस्ती खिलाए जा रही है .. ( डकार लेते हुए) मुझे नहीं खाना अब |
गुप्ता जी – ( वाणी में बड़ी ही मिठास घोलते हुए ) कोई बात नहीं बेटे , सामने जो जूठन का ढेर है न वहाँ डलवा देता हूँ | कुत्ते खा लेंगें |
डिम्पल गौर 'अनन्या' (३१/१/१५)
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिए सादर आभार ...
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया मेरे लेखन की गति को और अधिक विकसित कर पाएगी ...| बधाई के लिए धन्यवाद ..सादर
सादर आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी ...आपके द्वारा सुझाए गए बिंदु वाकई में काबिलेतारीफ हैं ..आपको एक बात बताना चाहती हूँ कि गोपाल का रास्ते में भीख माँगने वाली घटना मैं भी जोड़ना चाह रही थी मगर लगा कि कहीं अधिक लम्बी न हो जाए | अन्य कई महत्वपूर्ण बिंदु भी मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण लगे ..सही और सटीक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ |
आदरणीया डिम्पल गौर जी,संवेदनशील विषय पर प्रभावित करती एकांकी के लिए हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया डिम्पल गौर जी,सुन्दर प्रयास ,हार्दिक बधाई आपको ! बाकी "बागी" सर की बात पर गौर करियेगा ! सादर
आदरणीया डिम्पल गौर जी, एकांकी के लिए जो विषय का चयन आपके द्वारा किया गया है उसपर कई कई बार कई कई बातें कही और लिखी जा चुकी है, विषय संवेदनशील है और मानव हृदय को झकझोर देने वाला है. कुछ विन्दुओं का जिक्र करना चाहता हूँ ....
//गोपाल रास्ते में कई लोगों से भीख माँगता हैं मगर हर कोई उसे दुत्कार देता है//
--भीख में खाना मांगने पर आज भी कई ऐसे लोग हैं जो अवश्य देते हैं. खैर माना कि उसे भीख नहीं मिला.
--क्यों न उस घर में खाना पहले मांगने गया जहाँ उसकी माँ काम करती है, भारतीय परिवेश में काम वाली बाई को लोग खाना वगैरह दे देते हैं.
//उसके कदम बरबस ही दावत की मेज तक पहुँच गए ..वह नीचे झुक कर चुपके से पूरियाँ उठाने की कोशिश करने लगता है//
---गुप्ता जी का घर हो या कोई घर हो खाना चुराने पर पिटेगा ही, क्या पहले गोपाल को खाना माँगना नहीं चाहिए था?
मुझे लगता है कि इन विन्दुओं पर भी लेखिका को ध्यान देने की जरुरत. एक संवेदनशील विषय पर काम करने हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आदरणीया.
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