तोहफा :
हेमा के हाथों में मेहँदी लग चुकी थी | विवाह में अब केवल दो ही दिन शेष रह गए थे |
रिश्तेदारों के नाम पर आए हुए कुछ लोगों में से दो महिलाएं खुसर फुसर कर रहीं थीं ||
“अरे इसके चेहरे पर तो दुल्हनों जैसी चमक ही नहीं है कितना बुझा बुझा सा मुखड़ा लग रहा है!
“अब क्या करे बेचारी ! माँ बाप ने कैसे न कैसे, जोड़ तोड़ करके तो यह रिश्ता करवाया है | “
"हाँ तुम सही कह रही हो | लेकिन यह अकेली ही तो इस घर की जिम्मेदारी उठा रही थी| अब क्या होगा इसके जाने के बाद ?"
"भाई है न…
Added by डिम्पल गौड़ on April 25, 2015 at 12:47am — 10 Comments
ख्वाहिशों के सूरज का उगना हर सुबह
मन की खिड़की से झांकना हर सुबह
परदे मन पर लगाना चाहती है
ओट में हसरतों को दबाना चाहती है
क्योंकि वह एक लड़की है
समाज की नज़रों में लड़की बोझ होती है
उसे उम्मीदों के आँगन में
आशाओं के फूल खिलाने का
कोई हक नहीं होता
उसे हक है बस इतना कि
पराया धन कहलाए
किसी और के मधुबन को
चमन वो बनाए
लगा कर माथे रक्तिम गोल चिन्ह
किसी की पत्नी तो
किसी की बहू वह कहलाए
पैरों में बाँध कर…
Added by डिम्पल गौड़ on April 21, 2015 at 12:00am — 16 Comments
नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें
सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है
चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी
पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है
रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है
निशब्द सी धडकनें डरकर रह जाती है
जज्बात उसके सदा सहमें से लगते हैं
घरोंदे में छुपकर वह जीवन बिताती है
सिंदूर में रंग कर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 27, 2015 at 1:00am — 18 Comments
“मम्मी मैं किटी पार्टी में जा रही हूँ , आप हेमा को कह दो वह विवान को दूध दे देगी ...वैसे भी विवान मेरे पास नहीं उसी के पास रहता है |” अपने लहराते हुए बालों को झटका देते हुए फाल्गुनी ने कहा ||स्टाइल में रहना, फैशनेबल कपड़े पहनना, सहेलियों के बीच अपनी सुन्दरता की प्रशंसा सुनना, यही तो मनपसंद कार्य है फाल्गुनी का | जन्म तो दिया बच्चे को मगर ममता नहीं लुटा पाई |
इसके विपरीत हेमा जो कि अपने से अधिक चिंता करती है घर परिवार की...अपनी जेठानी के पुत्र पर जान से भी अधिक स्नेह लुटाती है मगर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 14, 2015 at 3:30pm — 14 Comments
गुनगुन करती थी सदा
वो एक लड़की ..
खिड़की से आती थी नज़र
वो एक लड़की
कभी नाचती गुड़िया संग
कभी लगाती गुलाबी रंग
बाबा के कंधों पर चढ़
दुनिया थी देखती
माँ की बाहों में झुला झूलती
समय उपरान्त
उसी खिड़की में
आई नज़र
वो एक लड़की
ले रंगबिरंगी चुनर
पूरियाँ तलती थी
बाबा को बिस्तर पर सुला
माथा सहलाती
वो एक लड़की...
बहुत दिनों से
बंद थी खिड़की
नहीं आती नजर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 8, 2015 at 12:27am — 14 Comments
पात्र परिचय
गोपाल - एक गरीब बालक (उम्र करीब दस साल )
जमुना - गोपाल की माँ
मुनिया - गोपाल की छोटी बहन
गुप्ता जी - प्रतिष्ठित व्यापारी
रमेश - गुप्ता जी का छोटा भाई
गोलू - गुप्ता जी का सात वर्षीय पुत्र
शामू - गुप्ता जी का नौकर
(प्रथम दृश्य)
(छोटी सी झोपड़ी में जमुना , टूटी…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on January 31, 2015 at 11:00pm — 6 Comments
दीवारें चहकने सी लगे
मकान जब घर बनता है
तेरे आने से घर मेरा
जन्नत बनता है
खुशियाँ , सावन की
घटाएँ बनने लगी
किलकारी से तेरी
मेरी दुनिया सजने लगी
खिड़कियाँ घर की
उम्मीद का सूरज लाए
सुगन्धित मस्त पवन
गीत बहारों के गुनगुनाएँ
आँगन में फागुन
रंग नए बिखरा गया
बसंती खेत की तरह
मेरे घर को वो लहरा गया
सरसों की फसल सम
मनभावन सा घर
पूज्य है मुझको मेरा छोटा सा घर…
Added by डिम्पल गौड़ on January 30, 2015 at 10:08am — 13 Comments
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