जगाता रहा
समय का चाबुक
जन जन को !
निगाहों पर
तस्वीरों के निशान
उभर आते !
सोयी आँखों में
सपने बनकर
बिचरते हैं !
संकेत देते
बढ़ते कदमो को
संभलने का !
इंसानी तन
लिप्त था लालसा में
नजरें फेरे !
संभले कैंसे
रफ़्तार पगों की
बेखबर दौड़े !
रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 26, 2013 at 7:30pm — 4 Comments
नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,…
Added by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 25, 2013 at 10:00am — 8 Comments
सब कुछ अपने पर सहती है,
तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,
सीना फाड़ के नदी बहती है !
सूर्यदेव को यूँ देखो तो,
हर रोज आग उगलता है,
चाँद की शीतल छाया से भी,
हिमखंड धरा पर पिघलता है !
ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,
घटायें अपना रंग…
ContinueAdded by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 13, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
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