For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,
किसी ने रोका मुझे भंवर में,
कोई प्यासा दूर खड़ा था !
कभी आँखों से टपका मैं,
कभी बादल बनकर बरसा हूँ,
कभी सिमट कर इस माटी में,
नदी नालों में बहता हूँ
कब कहाँ किसके काम आऊँ
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ
सब के तन मिटे इस माटी में
मैं तो फिर भी पानी हूँ !

– रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’

 

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रविकर on February 27, 2013 at 4:44pm

सुन्दर रचना -
शुभकामनायें आदरणीय -

Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:30pm

कब कहाँ किसके काम आऊँ
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ...waahh..Faiyaadi sahab...aapka to jawaab hi nahi.....shaandaar...

Comment by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 26, 2013 at 10:26am

सभी मित्रों का हार्दिक आभार आप का स्नेह और आशीर्वाद मेरे शव्दों को यूँ ही मिलता रहे ! 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 10:01pm
आदरणीय राजेंद्र जी!बहुत ही अच्छी कविता है।बधाई
//हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,
किसी ने रोका मुझे भंवर में,
कोई प्यासा दूर खड़ा था !
कभी आँखों से टपका मैं,
कभी बादल बनकर बरसा हूँ,//
वाह क्या कहने।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 25, 2013 at 8:16pm

बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2013 at 6:51pm

जल की निर्झारता को बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है, हार्दिक बधाई 


पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !............... (दूजों के हित जीने का) या इसी तरह का कोई वाक्यांश शायद भावानुरूप रहेगा...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 25, 2013 at 6:26pm

सुन्दर रचना, सुंदर कल्पना, अच्छा भाव, बधाई राजेन्द्र सिंह फरियादी जी 

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 6:16pm

बहुत सुन्दर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
13 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
14 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service