नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,
किसी ने रोका मुझे भंवर में,
कोई प्यासा दूर खड़ा था !
कभी आँखों से टपका मैं,
कभी बादल बनकर बरसा हूँ,
कभी सिमट कर इस माटी में,
नदी नालों में बहता हूँ
कब कहाँ किसके काम आऊँ
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ
सब के तन मिटे इस माटी में
मैं तो फिर भी पानी हूँ !
– रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
Comment
सुन्दर रचना -
शुभकामनायें आदरणीय -
कब कहाँ किसके काम आऊँ
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ...waahh..Faiyaadi sahab...aapka to jawaab hi nahi.....shaandaar...
सभी मित्रों का हार्दिक आभार आप का स्नेह और आशीर्वाद मेरे शव्दों को यूँ ही मिलता रहे !
बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिये
जल की निर्झारता को बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है, हार्दिक बधाई
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !............... (दूजों के हित जीने का) या इसी तरह का कोई वाक्यांश शायद भावानुरूप रहेगा...
सुन्दर रचना, सुंदर कल्पना, अच्छा भाव, बधाई राजेन्द्र सिंह फरियादी जी
बहुत सुन्दर!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online