वो लम्हे विरह गीत न बन जाये
लौट आओ साजन सावन के पहले
पपिहा पीऊ पीऊ आवाज लगाये
पेडो पर पड गये झुले
कजरी लागे मोहे सौतन
बदरा की बुन्दे जलये तन मन
लगी है प्रित मेरी अब अशुअन से
लौट आओ साजन सावन के पहले
जोगन न बन जाये कही ये बिरहन
लौट आओ साजन सावन के पहले
मुख मलिन , जैसे काली बदरिया
पनघट पे ना रिझाये कोइ सवरिया
सुनी सुनी पडी है पुरी डगरिया
आंगन सुना, सुना भयॊ मेरे मन का…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 14, 2016 at 7:30pm — 3 Comments
जब मेरे ही पूजित पाषाण ने
मेरा उपहास किया,
तब मन मे बैराग्य हुआ
जब पुल्लवित बसंत मे,
फ़ूलो ने भवरो का हास किया
तब मन मे बैराग्य हुआ
…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 4, 2016 at 11:05pm — 6 Comments
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