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संघर्ष अभी जीवित है ...वो मरा नहीं

पिता जी, 

संघर्ष अभी जीवित है 

वो मरा नहीं 

अब भी आपके सपने 

उसकी आँखों में ही है 

वो आँसुयों में बहे नहीं 

यद्यपि 

वह  टूटा नजर आ रहा 

परंतु , पिता जी 

अभी संघर्ष जीवित है 

वो मरा नहीं 

अभी भी उसमे अरमान है 

अनंत आकाश में उड़ने की ख्वाहिश  है 

जो आप ने उसे दिखाये थे 

यद्यपि 

वह  थक कर रुक गया है 

परंतु पिता जी संघर्ष अभी मरा नहीं है 

संघर्ष अभी उठेगा 

संघर्ष अभी दौड़ेगा 

आप के अरमान पूरे होंगे 

आप की तमन्नाये पूरी  होगी 

यद्यपि  संघर्ष अभी थक गया है 

परंतु संघर्ष अभी मरा नहीं 

संघर्ष अभी मरा नहीं ...

                         अरुणेन्द्र मिश्र   “संघर्ष ”

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Comment by MAHIMA SHREE on April 20, 2012 at 5:58pm
आदरणीय अरुणेन्द्र जी , नमस्कार
पता नहीं आपने रोहित शर्मा जी की "माँ " पढ़ी है या नहीं पर आपकी कविता उसी रौ में लिखी कड़ी को जोड़ती हुई चल रही है .......
आप उसे अवश्य पढ़े ....
आपको बहुत -२ बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 20, 2012 at 4:13pm

अरुणेंद्रजी, वयस विशेष की छटपटाहट को बाँध सकने में प्रस्तुत रचना कामयाब है.

लेकिन एक बात, बस उत्सुकतावश.  आखिर ’संघर्ष’ थक ही क्यों गया है ? आखिर उसने किया ही क्या है अबतक ? 

सही कहूँ तो मैं भी अपने ’संघर्ष’ से तब पूछ नहीं पाता था और उसके प्रति कोमल संवेदनाएँ रहा करती थीं. आज इसलिये पूछ पाता हूँ कि मेरा संघर्ष अब उस तरह की थकान को थकान नहीं मानता. जानता है, कि जीवन के आने वाले समय में थकान का विस्फोट झेलना है. फिर भी चलना है.

इस ज़िन्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by Sarita Sinha on April 20, 2012 at 3:02pm

अरुणेन्द्र जी, नमस्कार,

खुद को कुछ कर गुजरने केलिए याद दिलाती हुई उत्तम रचना...बधाई....
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 19, 2012 at 4:58pm

aadarniy mishra ji, sangharsh na ho to jine ka maja hi kya. badhai, thakna nahi. 

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