For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा's Blog – July 2010 Archive (6)

,हलचल मचाना चाहता हूँ ! ...

सम्वेदनाओं के शून्य को ,जगाना चाहता हूँ !

विचारो के उत्तेज से ,हलचल मचाना चाहता हूँ !



मर्म को पहचान, चोट करारी होनी चाहिए ,

बंद आँखों को नींद से ,जगाना चाहता हूँ !

…!!

खून की गर्म धारा ,बह रही ही जिस्म में ,

देश-भक्ति का इसमें ,उबाल लाना चाहता हूँ !



जज्बों में ना कमी हो तो ,समन्दर भी छोटा है ,

,आसमां में अपना तिरंगा फहराना चाहता हूँ !



कमी नही इस देश में, बौद्धिक शारीरिक बल की ,

‘कमलेश’ इसे विश्व शीर्ष पर पहुंचाना चाहता हूँ…
Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 11:03pm — 1 Comment

पल को लगा..!!!

अनजाने में छू गया था हाथ तेरा ,
पल को लगा मिल गया , तेरा ।

दिल ही तो है इसका क्या करें ,
न मिलो तो होता होगा, क्या हाल मेरा ।

ये ख्याल मुझे जीने नही देता ,
मिली तो क्या होगा सवाल तेरा ?

कटने को कट तो कट रही है जिन्दगी ,
क्यूँ की मेरे पास है जो रुमाल तेरा ।

ऐसे बेदर्द तो नही हो” कमलेश” ,
की जेहन में न आए ख्याल मेरा ॥

Posted in अहसास | Tags: पल,

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:54pm — 2 Comments

कौन होना चाहता है...!!?

कौन होना चाहता है



यहाँ बे-आबरू ।



ये वक्त ही है ,

बे-शर्म बना देता है



हसरत मुझे भी थी,



आसमान छूने की ,



वक्त ,कोशिशों की सीढ़ी को ,



बे-वक्त गिरा देता है ।



संभल -संभल कर बढ़ रहे थे ,



जानिबे – मंजिल ,



जो कभी खत्म न हो राह ,



वक्त,पकडा वो सिरा देता है ।



टूटते हौंसलों को ,



कैसे सम्भाले ”कमलेश” ,



बसे बसाये घरौंदों पर ,



वक्त बिजली गिरा देता है… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:50pm — 1 Comment

मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है....???

मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है? इस पूरे जहान से ,



चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।!





इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,



जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!



फिजां की इन सरसराती हवावों में है ,बू साजिश की



, इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान की ।!



कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,



कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!



‘कमलेश ‘अब भी बहुत कुछ है… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:14pm — 2 Comments

गर तुम मेरे जज्बातों.....!!!

मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,


बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले न होते ,


रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ,


''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते ,


हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी न नुकीले होते

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 9:41pm — 3 Comments

फिर भी इम्तहान दिया मैंने ...!!!

कितना दिल लगाने से पहले, इत्मिनान किया मैंने ,

सच्ची है मुहब्बत 'का' फिर भी इम्तहान दिया मैंने ॥



कहने को तो मुहब्बत करना, गुनाह है इस जहाँ में ,

फिर भी करके मुहब्बत ,किया सबको हैरान मैंने ॥



हमारे इश्क की चर्चा है, शहर के ह़र मोड़ पर ,

इस तरह सारे शहर को, किया परेशान मैंने ॥



न छूटे दिल की लगी ,तेरी दिल-लगी में कहीं ,

कितना तेरे लिये दिल ,लगाना किया आशां मैंने ॥



तुझसे माँगा न कभी, तेरी चाहत के सिवा ,

तेरी चाहत की राहों में , सब… Continue

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 9:40pm — 1 Comment

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service