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किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
जिनसे की है मुहब्बत बे-हिसाब की

दीखते नही वो दिन में ,रातें भी स्याह हुई
हुई मद्धम रोशनाई मेरी वफ़ा-ए-महताब की

किससे गिला करूं कहाँ तहरीर दूं ?
कोई ढूंढ लाये तस्वीर मेरे ख्वाब की

बिखर जाएगी शर्मो -हया इस जहाँ में
जो बरसों से हिफाजत में है हिजाब की

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 26, 2010 at 7:00pm
कमलेश भईया बढ़िया ख्यालात है , आपकी रचनाओं का इन्तजार रहता है,
Comment by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:23am
अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने|

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