रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह ,
ना सच को दिखा आईने की तरह ।
ना पकड इक साख को उल्लू की मानिंद ,
वक़्त-ए-हिसाब बैठ डालों पर परिंदों की तरह ।
ना उलझा खुद को रिश्तों की जंजीरों में ,
कर ले मद-होश अपने को रिन्दों की तरह ।
ना कर हलकान खुद को ,हर तरफ है मायूसी ,
हो जा बे-दिल बे-मुरव्वत परिंदों की तरह ।
गर मिलती है इज्ज़त यहाँ ,मरने के बाद ,
फिर ‘कमलेश’क्यों जीना जिन्दों की तरह ॥
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on October 25, 2010 at 10:17pm —
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किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
जिनसे की है मुहब्बत बे-हिसाब की
दीखते नही वो दिन में ,रातें भी स्याह हुई
हुई मद्धम रोशनाई मेरी वफ़ा-ए-महताब की
किससे गिला करूं कहाँ तहरीर दूं ?
कोई ढूंढ लाये तस्वीर मेरे ख्वाब की
बिखर जाएगी शर्मो -हया इस जहाँ में
जो बरसों से हिफाजत में है हिजाब की
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on September 24, 2010 at 10:00pm —
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मन की बुझी ना प्यास तेरे दीदार की
मन का था भ्रम या हद थी प्यार की ।
क्यूँ नहीं समझता ये दिल अपनी हदों कों
किया सब जो थी मेरी कूवत अख्तियार की।
जिद में क्यूँ कर बैठा तू ऐसी खता
कर दी बदनामी खुद ही अपने प्यार की ।
सुर्खरू हो जाता है तन-मन तुझे देख कर
सुध-बुध नही रही इसे अब संसार की ।
हर तमन्ना में बस तमन्ना है तेरे दीद की
कयामत की हद बना रखी है इंतजार की ।
जमाना चाहे जितने कांटे बिछा दे राहों में
'कमलेश 'जीत आखिर…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on September 22, 2010 at 7:30pm —
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सम्वेदनाओं के शून्य को ,जगाना चाहता हूँ !
विचारो के उत्तेज से ,हलचल मचाना चाहता हूँ !
मर्म को पहचान, चोट करारी होनी चाहिए ,
बंद आँखों को नींद से ,जगाना चाहता हूँ !
…!!
खून की गर्म धारा ,बह रही ही जिस्म में ,
देश-भक्ति का इसमें ,उबाल लाना चाहता हूँ !
जज्बों में ना कमी हो तो ,समन्दर भी छोटा है ,
,आसमां में अपना तिरंगा फहराना चाहता हूँ !
कमी नही इस देश में, बौद्धिक शारीरिक बल की ,
‘कमलेश’ इसे विश्व शीर्ष पर पहुंचाना चाहता हूँ… Continue
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 11:03pm —
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अनजाने में छू गया था हाथ तेरा ,
पल को लगा मिल गया , तेरा ।
दिल ही तो है इसका क्या करें ,
न मिलो तो होता होगा, क्या हाल मेरा ।
ये ख्याल मुझे जीने नही देता ,
मिली तो क्या होगा सवाल तेरा ?
कटने को कट तो कट रही है जिन्दगी ,
क्यूँ की मेरे पास है जो रुमाल तेरा ।
ऐसे बेदर्द तो नही हो” कमलेश” ,
की जेहन में न आए ख्याल मेरा ॥
Posted in अहसास | Tags: पल,
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:54pm —
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कौन होना चाहता है
यहाँ बे-आबरू ।
ये वक्त ही है ,
बे-शर्म बना देता है
हसरत मुझे भी थी,
आसमान छूने की ,
वक्त ,कोशिशों की सीढ़ी को ,
बे-वक्त गिरा देता है ।
संभल -संभल कर बढ़ रहे थे ,
जानिबे – मंजिल ,
जो कभी खत्म न हो राह ,
वक्त,पकडा वो सिरा देता है ।
टूटते हौंसलों को ,
कैसे सम्भाले ”कमलेश” ,
बसे बसाये घरौंदों पर ,
वक्त बिजली गिरा देता है…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:50pm —
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मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है? इस पूरे जहान से ,
चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।!
इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,
जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!
फिजां की इन सरसराती हवावों में है ,बू साजिश की
, इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान की ।!
कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,
कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!
‘कमलेश ‘अब भी बहुत कुछ है…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 10:14pm —
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मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,
बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले न होते ,
रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ,
''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते ,
हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी न नुकीले होते
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 9:41pm —
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कितना दिल लगाने से पहले, इत्मिनान किया मैंने ,
सच्ची है मुहब्बत 'का' फिर भी इम्तहान दिया मैंने ॥
कहने को तो मुहब्बत करना, गुनाह है इस जहाँ में ,
फिर भी करके मुहब्बत ,किया सबको हैरान मैंने ॥
हमारे इश्क की चर्चा है, शहर के ह़र मोड़ पर ,
इस तरह सारे शहर को, किया परेशान मैंने ॥
न छूटे दिल की लगी ,तेरी दिल-लगी में कहीं ,
कितना तेरे लिये दिल ,लगाना किया आशां मैंने ॥
तुझसे माँगा न कभी, तेरी चाहत के सिवा ,
तेरी चाहत की राहों में , सब…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on July 6, 2010 at 9:40pm —
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आज पिर्तु दिवस पर मै श्रधान्जली के रूप में अपना नाम ;; कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा'' रखता हूँ ,आने वाली रचनाओ में इसी नाम से आप लोग ,अपना प्यार और आशीर्वाद दें...धन्यवाद
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 20, 2010 at 2:15pm —
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कौन कहता है ........मै इन्सान नहीं हूँ ,
हरकतें तो वही हैं ,मतलब भगवान नहीं हूँ ॥
मन में सब दुनियावी इच्छओं का ढेर लगा है ,
सब है फिर भी मुझको भी, ९९ का फेर लगा है ॥
मन की सारी चिंताएं बिलकुल, सबके जैसी हैं ,
मेरी हैं सबसे अलग, तुम्हारी बताना कैसी है ॥
हम तो सबका भला मांगते, ऐसा मन कहता है ,
पर हमेशा अपने भले की ,दुआ ये मन करता है ॥
हूँ इन्सान पर कहता हूँ'' मै बेईमान नही हूँ '',
अगर यह सच है, तो लगता है ''इन्सान नही हूँ…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 19, 2010 at 8:01pm —
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इक बार क्या मिला वो ,हर दिल अज़ीज़ हो गया ,
पल दो पल में वो मेरे दिल के, करीब हो गया ॥
अनजान थे जो अब तक, उसके असरार से ,
अंजुमन में हुई जब उसकी आमद, हबीब हो गया ॥
फिजां में ना था कही पे, उसका नामोनिशां ,
है हर शख्श की जुबां पर, यही ''मेरा नसीब हो गया ॥
जो बदनामी के डर से, राहें अपनी बदल गए ,
हैं ! वो बने हम -सफर ,कुछ किस्सा अजीब हो गया ॥
जिंदगी को करीने से, सजा रखी थी हमने ''कमलेश '',
उसने दस्तक दी जब से ,दिले -मंजर बे-तरतीब हो…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 9:35pm —
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हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,
जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥
भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,
बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥
कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥
जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥
सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,
भयावह मंजर से अब भी '' उसकी…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 11:48am —
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भीग जाती थी तेरी आँखें, मुझे याद करके ,
तब क्यों न देखा !तुमने मुझे जी भर के ॥
जब सामने थी तो न ,टिक सकी ये मुझ पर ,
अब क्यूँ करती हैं शिकवा, ये रह -रह करके ॥
इनकी उल्फत का न कोई ,सानी है इस जहाँ में ,
बसाये रखती हैं ये यादें ,अपने में मर करके ॥
कौन समझे इन आँखों की, दीवानगी को ''कमलेश ''
भीगने की अदा अता की, खुदा ने इनको जी भर के ॥
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 10, 2010 at 9:39pm —
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अपने लहू के इक -इक कतरे का हिसाब चाहिए !
फंदे पर लटकते 'अफज़ल'और'कसाब'चाहिए!
जिनका बहा है खून जरा ,उनके दिल से पूछिए ,
जो देखा था आँखों ने वो , सुंदर सा ख्वाब चाहिए !
कितनी गैरत बाकि है इस देश में ,गैरों के लिये ,
क्यों ? ये मेहमान नवाजी इनकी .जवाब चाहिए !
जिंदगियोंमें जो अँधेरा किया, इन जालिमों ने ,
इनमे रोशनी भरने को, हजारों महताब चाहिए !
इनकी जड़ों को काट दो ,जहाँ से ये निकलती है ,
उन शहीदों की आत्माओं को, भी इंसाफ चाहिए…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 10, 2010 at 9:02pm —
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आज तक वो नही मिली ,जिसकी दरकार थी ,
झूठी निकली मेरी तमन्ना ,पीड़ मिली हार बार थी ॥
तिनका -तिनका जोड़ परिंदों ने, घर अपना बना लिया ,
ना मिला कोई मेरे घर को,वैसे इनकी भरमार थी ॥
जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥
जिसको लेकर वो उलझे थे ,उनकी ग़लतफ़हमी थी ,
जिसे वो जीत समझे थे , वास्तव में उनकी हार थी ॥
''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी…
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Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 8, 2010 at 10:59pm —
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