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आज तक वो नही मिली ,जिसकी दरकार थी ,
झूठी निकली मेरी तमन्ना ,पीड़ मिली हार बार थी ॥

तिनका -तिनका जोड़ परिंदों ने, घर अपना बना लिया ,
ना मिला कोई मेरे घर को,वैसे इनकी भरमार थी ॥

जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥

जिसको लेकर वो उलझे थे ,उनकी ग़लतफ़हमी थी ,
जिसे वो जीत समझे थे , वास्तव में उनकी हार थी ॥

''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी इंकार थी !!

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Comment

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Comment by Admin on June 9, 2010 at 2:12pm
कमलेश भाई सर्वप्रथम तो ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच पर मै आपके पहले पोस्ट का तहे दिल से स्वागत है, आपकी पहली रचना देखने से ऐसा लगता है की एक और हीरा ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार मे शामिल हो चूका है, बहुत ही अच्छी रचना है, आगे भी आपकी रचनाओ का इन्तजार रहेगा, धन्यबाद,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 9, 2010 at 1:51pm
bahut khubsurat suruaat ,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 9, 2010 at 1:14pm
भाई कमलेश चन्द्र वर्मा जी, सब से पहले तो आपका बहुत बहुत स्वागत है oBo परिवार में ! आपका आगमन इतनी सुंदर रचना के साथ हुआ है - देख कर बहुत अच्छा लगा ! आशा है कि आपका सहयोग हमें ऐसे ही मिलता रहेगा !
Comment by aleem azmi on June 9, 2010 at 1:00pm
जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥
bahut nirala andaaz hai aapka sahab ...aapki rachna wakai me bahut kabile tareef hai
likhte rahiye
shukriyaaaaaa

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 8:05am
जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे ॥

कमलेश भईया आपने तो अपने पहले ही पोस्ट मे ही तेवर दिखा दिया है, बहुत ही संजीदा ग़ज़ल कही है आपने , भावनाओं से भरी इस रचना के लिये आप को बहुत बहुत साधुवाद , आपके अगले रचना का बहुत सिद्दत से इन्तजार रहेगा, धन्यबाद,
Comment by baban pandey on June 9, 2010 at 6:29am
कमलेश जी ...प्यार बकवास लगने लगा ...तो समझिये जिन्दगी की शुरुआत हो गयी ....बहुत अच्चा ..

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