बस इतनी सी मेहर रखना
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(लक्ष्य “अंदाज़”)
हम फकीरों से घर की उम्मीद न इधर करना !
ढल जाये शाम तो दरख्त तले भी बसर करना !!
राहे-उल्फत में तुम हवा के परों पर सवार हो ,
अहले-ज़मीं हैं हम ,बस सड़क पे सफ़र करना !!
फूल मुहब्बत के तारीखे-शुआओं से जल गए ,
कोंपलों की आस में अब भी क्यूँ शज़र रखना !!
तुम्हारी हर दुआ कुबूल है उस इलाही के दर ,
दुआओं में याद रखना बस इतनी…
ContinueAdded by डॉ.लक्ष्मी कान्त शर्मा on July 13, 2015 at 2:30pm — 4 Comments
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