औरत
मैंने
औरत बन जन्म लिया
हाँ मैं हूँ
एक औरत
और औरत ही
बनी रहना चाहती हूँ
क्यूंकि
मैं इक बेटी हूँ
मैं इक बहन हूँ
मैं इक पत्नी हूँ
सर्वोपरि इक माँ हूँ
मैं इक पूरी कौम हूँ
एवं
इनसे जुडे हर रिश्ते
की बिन्दू हूँ मैं
वो सभी घूमते रहते हैं
मेरे चारों ओर
एक वृत्त की तरह
और मैं
चाहे…
ContinueAdded by vijayashree on July 19, 2013 at 10:32pm — 15 Comments
पीढ़ियों का अंतर
पीढियों के अंतर में कसक भरी तड़पन है
इनकी अंतरव्यथा में गहरी चुभन है
जिंदगी की सांस् सिसकियों में सिमटी जा रही है
जिसमें खुशनुमा सी सुबह धुंधली होती जा रही है
दादा दादी, नाना नानी ,पोते पोती ,नाती नातिनें
मिलजुल कर प्यार से रहने के वो रिवाज़औरस्में
क्यूँ आ गई है दीवारें इनमें
कैसे पाटा जायेगा ये अंतर हमसे
ये अंतर घर परिवार की खुशियों को खा रहा है
ऐसा पहले तो नहीं था अब कहाँ से आ रहा…
ContinueAdded by vijayashree on July 12, 2013 at 4:00pm — 8 Comments
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