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मौ  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2013 at 7:42am

अपनी-अपनी सी कविता है.  बधाई आदरणीया विजयाश्री जी

Comment by vijayashree on April 9, 2013 at 2:54pm

आभार .........डॉ प्राची

         ...........सावित्री राठौर जी

Comment by Savitri Rathore on April 7, 2013 at 12:09am

बड़े सहज-सरल शब्दों में आपने नारी-जीवन की विषम परिस्थितियों का चित्रण किया है,साथ ही एक माँ की पीड़ा को भी स्वर प्रदान किया है।विजयाश्री जी इस मर्मभेदी रचना हेतु आप प्रशंसा की पात्रा हैं।


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Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2013 at 7:02pm

माँ के बुलावे में एक अलग ही कशिश होती है, जिसे बेटी का ह्रदय शायद न समझ पाए पर एक माँ का ह्रदय बखूबी समझता है...

सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया विजयश्री जी 

Comment by vijayashree on April 5, 2013 at 4:56pm

मीना पाठकजी शुक्रिया ....मेरी आँखें भी भर आई थी लिखते -लिखते

Comment by vijayashree on April 5, 2013 at 4:54pm

अरुण शर्मा 'अनन्त' जी रचना संज्ञान के लिए शुक्रिया . माँ की याद आना स्वाभाविक है ...माँ का साथ और आशीर्वाद ()तो हमेशा बच्चों के साथ होता है ....वो पास हो या दूर

Comment by Meena Pathak on April 5, 2013 at 4:44pm

आंखें भीग गईं आप की रचना पढ़ कर ... बहुत बहुत बधाई इस मार्मिक रचना के लिए 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 5, 2013 at 4:31pm

आदरेया सादर प्रणाम इस प्रस्तुति पर आपको ढेरों बधाई और कुछ कहूँगा नहीं क्षमता नहीं है कुछ भी कहने की जब भी माँ की बात आती है माँ की बहुत याद आती है, सोंचने समझे कहने की क्षमता ख़तम हो जाती है मस्तिष्क शुन्य हो जाता है.

Comment by vijayashree on April 5, 2013 at 4:14pm

Ashok Kumar Raktale जी , ram shiromani pathak जी ,vijay nikore जी , Laxman Prasad Ladiwala जी , Kewal Prasad जी , SANDEEP KUMAR PATEL जी .....रचना संज्ञान और के लिए शुक्रिया .

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 1:04pm

आदरणीया बहुत सुन्दर मार्मिक रचना, हम कहते हैं बेटियों को पराया न कहो मगर तब यही बातें बेटी को पराया बना देती हैं. फिर माँ तो कह कर बुला भी लेती है. पिता शायद कह भी नहीं पाते.बधाई स्वीकारें.

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