बह्र-212-212-212-212
घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।
गुमशुदा हूँ अगर गुमशुदा ठीक हूँ।।
पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।
हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।
मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।
मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।
ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।
घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।
शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।
बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।
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आमोद बिन्दौरी…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2018 at 5:00pm — 4 Comments
2122-2122-2122-212
आप को जाना ही है तो आज कल इतवार क्यों।
तोडना गर दिल ही है तो प्यार और मनुहार क्यों।।
आप की नजरें बयाँ क्यों कर बहाना है नया ।
आप की यह भीगती पलकों में ये उपहार क्यों।।
शौख था गर भूलना ही भूल जाते बे -शबब।
खुशबुएँ ज़ेहनी , अभी भी कर रहे गुलजार क्यों।।
रोक लो यह छटपटाती रूह का एहसास है ।
जल चुका है आशियाँ जो खोज इसमें प्यार क्यों।।
देखना गर चाहते हो मेरे चेहरे में ख़ुशी।
हाथ में लेकर खड़े हो आप…
Added by amod shrivastav (bindouri) on August 5, 2018 at 1:01pm — 4 Comments
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