सारी बातें भूलाकर
तुम्हारे दिये हर दर्द का
तोहफ़ा बनाकर
मै उठती हूँ हर सुबह
एक नई उमँग के साथ
कि शायद...
हाँ शायद
पा ही लूँगी
जो खोया था
आज ही होगा अंत
इन दुखदायी पलों का
मगर
घेर लेती है मुझे
फ़िर वही
जानी-पहचानी सी
मुस्कुराहट
मुह टेढ़ा किये
सुनो!
तुम्हारे ये बहाने
बदलते क्यों नही?
मेरा विश्वास…
ContinueAdded by सुनीता शानू on September 15, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
Added by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 11:23pm — 6 Comments
बस एक छोटी सी कोशिश है लिखने की...
मन को मनाने के अंदाज निराले है
हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं
उसने कसम दी तो न पी अभी तक
हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है
दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे
ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं
बात छोटी सी भी वो समझे नही
चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं
इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों
रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं
शानू
Added by सुनीता शानू on September 12, 2011 at 11:30pm — 8 Comments
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