बह्र - 1222-122-2212-22
कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।
बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।
सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।
उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।
वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।
कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।
मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।
बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।
मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।
ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on October 18, 2018 at 7:29pm — No Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 11:06pm — 4 Comments
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