अपनी आँखों को जब मैं
बंद करने कि कोशिश करता हूँ
सोने के लिए
तभी तरह-तरह के विचार आते हैं
मानो जैसे अब
मेरे रास्ते बंद हो गए हैं
मैं कायर सा
डरपोक सा
बैठ गया हूँ
तभी कुछ सुनायी पड़ता है
आवाज
किसी की
कहीं से आ रही है
कुछ कहने कि
समझने कि
कोशिश
इतना डरपोक न बन
हिम्मत कर
तू फिर से
मेहनत करके
एक नया नाम, इज़ज़त, शोहरत
कमा सकता है
इतना सोचते-सोचते
पता नहीं…
Added by SAURABH SRIVASTAVA on December 26, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
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