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डर.... एक सोच

अपनी आँखों को जब मैं
बंद करने कि कोशिश करता हूँ
सोने के लिए
तभी तरह-तरह के विचार आते हैं
मानो जैसे अब
मेरे रास्ते बंद हो गए हैं
मैं कायर सा
डरपोक सा
बैठ गया हूँ


तभी कुछ सुनायी पड़ता है
आवाज
किसी की 
कहीं से आ रही है
कुछ कहने कि
समझने कि
कोशिश


इतना डरपोक न बन

हिम्मत कर
तू फिर से
मेहनत करके
एक नया नाम, इज़ज़त, शोहरत
कमा सकता है

इतना सोचते-सोचते
पता नहीं कब
आँख लग जाती है

फिर एक नया सवेरा
एक नयी किरण
उम्मीद लेकर
फिर चली आती है.

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 30, 2013 at 10:49pm

सुन्दर आशावादी रचना

अपने आप से ही वार्तालाप ... डर और डर पर जीत का क्रम.... उम्मीद की किरण 

बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई स्वीकारिये आ० सौरभ जी 

Comment by Sonam Saini on December 30, 2013 at 12:42pm

वाह क्या बात है, भावनात्मक अभिव्यकि....सुंदर रचना

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 27, 2013 at 11:45pm

सुंदर सकारात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:54pm

स्वनामधन्य ! वाह !!

आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ .. पहली रचना ही आशान्वित कर रही है.

हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 8:10pm

आदरणीय सौरभ भाई , बहुत सुन्दर प्रस्तुति लगी , आशाओं - निराशाओं के बीच मन सदा झूलते ही रहता है ॥ बधाई ॥

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:36pm

मन में उठते विचारो को आपने अच्छी सकरात्मक अभिव्यक्ति दी ..बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2013 at 4:51pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2013 at 3:01pm

सौरभ जी , आपके भावो में एक तारतम्य है , तारतम्य तब आता है,  जब सोच बिखरी न हो i बहुत सुन्दर i बधाई हो i

Comment by coontee mukerji on December 27, 2013 at 2:41am

बहुत सुन्दर प्रयास है सौरभ जी.....प्रयास का सफ़र ज़ारी रहे.सादर

कृपया ध्यान दे...

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