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तुम हकीकत हो
या ख़्वाब?
बतादो ना.
अरज है मेरी
ज़नाब
बतादो ना.
तुम्हारे ही ख़्वाबों में
मैं जीता हूँ,तुम्हारी आँखों से ही
मैं पीता हूँ.
तुम अमृत हो
या शराब ?
बतादो ना.
अपनी जिंदगी का अक्स
तुम्हीं में देखता हूँ,
अपनी जिंदगी के मायने
तुम्हीं में पढता हूँ.
तुम आईना हो
या किताब?
बतादो ना.
जिंदगी के समंदर का
ज्वार भी तुम हो,
मेरी कश्ती और
पतवार भी तुम हो.
तुम सवाल हो
या…
Added by अशोक पुनमिया on August 20, 2012 at 2:55pm — 11 Comments
आदरणीय सम्पादक जी,
सादर नमस्कार.
OBO हेतु मेरी स्वरचित,अप्रकाशित,अप्रसारित एक ताज़ा रचना आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ.कृपया निर्णय से अवगत करावें.
भवदीय--
-- अशोक पुनमिया.
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आहट है किसी की,
कोई दस्तक दे रहा है…
ContinueAdded by अशोक पुनमिया on June 16, 2011 at 5:29pm — 6 Comments
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