For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ABHISHEK TIWARI's Blog (5)

पीठ मे छुरा घोपना किसे कहते हैं?

इस घटना ने मुझे जबरदस्त सबक सिखा दिया ! हुआ यह कि पिछले दिनों मेरे एक जो की किसी ज़माने में मेरे रूममेट हुआ करते थे मेरे घर पधारे ! उनको मेरे शहर में ही नौकरी मिली थी, लेकिन नया होने की वजह से उनको रहने का कोई ठिकाना अभी तक नहीं मिल पाया था ! क्योंकि उनसे पुरानी जान पहचान थी तो मैं उन्हे अपना समझकर अपने कमरे की चाबी सौंप कर अपने काम पर निकल गया ! लेकिन उस मित्र ने इस पल का भरपूर इस्तेमाल करते हुए मेरे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क ही बदल डाली| इस बात का आभास मुझे कल ही हुआ जब मैंने कंप्यूटर ठीक करवाने… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on October 20, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

रूठ गयी मुझसे प्रेयसी

आज पीने चला था जाम मैं,

प्रियतम ने प्याला थमा दिया|

चला था मैं इश्क लड़ाने,

उन्होने नज़रें झुका लिया|

कल्पना के हाथों से स्वयं

दो जाम बना दिया||

बड़ी नशीली आँखें उनकी,



मेरे मन मानस पर छा गयी|

श्यामल अंगूर की कोमल कलियों,

बीच शीशा लेकर आ गयीं|

नीर रसों के स्वाद ने मुझे

मधुघट की राह दिखा दिया|

मृदुल हथेली की चाहत ने,

उसे मादक द्रव्य बना दिया ||

एक बार ही तो था माँगा,

प्रेयसी, के…
Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on August 12, 2010 at 11:00am — 4 Comments

जीने की चाह

आज मेरे दिल को बहुत बड़ा सदमा लगा है, मुझे एक पल को लग रहा है की मेरी ज़िंदगी अब किसी काम की नही है मगर दूसरे ही पल अनेक तरह के सवाल मन मे उठने लगते हैं, आज मुझे एक बात का अहसास हो गया की अगर आपकी पहुँच नही है उपर तक तो आप बिल्कुल शुन्य हैं,इस धरती पर आपकी सुनने वाला कोई नही है ,आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है,एकबारगी तो मन आत्महत्या तक सोचने लगा था मगर मैने उसे समझाया,की नही ऐसा मत कर , ये काम तो कयरों का है, मगर ये दिल उस वाक्य को सुनकर एक अजीब सी उलझन मे है,समझ मे नही आ रहा है की क्या करूँ क्या… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on July 19, 2010 at 8:05pm — 2 Comments

रुँधे गले से मेरा नाम ले गयी

वो सफ़र की घड़ी

वो मुहब्बत की छड़ी

वो श्वेत मुस्कान की लड़ी

जैसे मानो दुनिया ही खड़ी



ऐसी अदा दिखलाके वो

जाने कहाँ गुम हो गयी

मुझे तन्हा छोड़ के गयी

मुझे बेसहारा कर के गयी..



उसका नज़रें चुराना

शर्म से पलकें झुकाना

हर अदा को छुपाना

जैसे खुद ही को झुठलाना



इतना करके भी वो खुद को रोक ना सकी

जैसे रुँधे गले से मेरा नाम ले गयी

खुद को झुठलाके वो खुद ही गुम हो गयी



वो अंजानी नगर

वो अनचाहा सफ़र

वो… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on May 22, 2010 at 4:32pm — 5 Comments

इलाज का इन्तजार आज भी है ,,,,



मुझे मालूम था,

उसे पा न सकूँगा,

उसे न पाने की कसक,

दिल में आज भी है ,,,

जमाना गुजर गया,,,,

पीढियां बदल गयी,

मुहाबत की गलियों में,

दिल बेकरार आज भी है,,,,,

मेरी तनहा ज़िन्दगी,

उनकी तनहा यादें,

सदियों की रुसवाई में,

दिल रुखसार आज भी है,,,

दिल नादाँ था बेवकूफ नहीं ,,

हार बैठा काँटों के झंझावतों में,

बचने का आसरा ही नहीं,

मगर दूर दरिया के पार,,

दिखती पतवार आज भी है,,,,,

मुझे उनकी सादगी पसंद थी,,

उन्हें…
Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on March 21, 2010 at 10:00pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service