Added by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 5:00pm — 35 Comments
चप्पल घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के । पिछले 3 साल से अपनी मास्टर डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था । मई महीने की दोपहरी थी । दैनिक पत्रिका के " वान्टेड " वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल घेरा लगाए सूरज पिछले चार घंटे से शहर के चक्कर लगाते भूख प्यास से बेहाल हो चुका था । शाम तक 2-3 इंटरव्यू और देना था उसे । बची-खुची हिम्मत जुटा , सिटी…
ContinueAdded by Kapish Chandra Shrivastava on October 5, 2013 at 10:30am — 37 Comments
Added by Kapish Chandra Shrivastava on October 4, 2013 at 9:30am — 24 Comments
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