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प्रत्युत्पन्नमति [ लघु-कथा ]

तनु और मान्या  दोनों  किचन में नाश्ते  की तैयारी कर रहे  थे  । रवि और अल्पना, तनु के  भैया -भाभी ,  ड्राइंग रूम में बैठे  टी. वी. देख रहे थे।  अचानक किचन से  छनाक की आवाज  सुनकर दोनों किचन की ओर  दौड़ पड़े । देखा टोमेटो केचप का नया बाटल फर्श पर चूर-चूर पड़ा है, सारा केचप बिखर गया था। तनु !!!!!  गरजता हुआ  रवि गुस्से से चिल्ला पड़ा - सम्हालकर काम नहीं कर सकती, पूरा केचप  बर्बाद कर दिया , कल ही लाया था 150 रु. में । घबराहट के  कारण तनु बोली " वो भैया मै मै --- उसके   आगे कुछ बोलने से  पहले ही अल्पना की छोटी बहन मान्या  की आवाज आई , नहीं जीजाजी इसमें तनु  की गलती नहीं है । बाटल  मेरे हाँथ से  फिसल गया था ढक्कन खोलते समय  । सॉरी जीजाजी  । सुनकर रवि और अल्पना  एक साथ ही बोल पड़े । अरे कोई बात नहीं मान्या  , क्या हुआ जो बाटल टूट गया, आज दूसरा ले आयेंगे ।  चलो नाश्ता लगाओ कहते हुए दोनों ड्राइंग रूम वापस चले गए । तनु  और मान्या  की निगाहें आपस में मिली। तनु आश्चर्य एवं कृतज्ञता  से और मान्या शरारत से एक दूसरे की ओर  देख रहे थे । तनु ने मुस्कुराकर  धीरे से कहा थैंक्यू  मान्या । और दोनों गले मिलकर धीरे से हंस पड़े । 
 
मौलिक एवं अप्रकाशित ----
कपीश चन्द्र श्रीवास्तव  [ दुर्ग ]

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Comment

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Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 10, 2013 at 7:07pm

  आदरणीय सुभ्रांशु  जी लघु कथा की प्रशंशा हेतु आपका बहुत-बहुत आभारी  हूँ । 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 10, 2013 at 5:59pm

आदरणीय कपीश जी, कथा में आपने रिश्तों का सुन्दर जाल बुना है. बधाई.

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 6:53pm


    आदरणीय अरुण शर्मा जी एवं आदरणीया गीतिका जी लघु-कथा की प्रशंशा के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ । 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 6:50pm

 आदरणीया सविता जी लघु कथा की प्रसंशा हेतु  आपको अनेको धन्यवाद ।

Comment by savita agarwal on October 9, 2013 at 3:13pm
रिश्तो को परिभाषित करती हुई एक उत्कृष्ट रचना की बधाई .....
Comment by वेदिका on October 8, 2013 at 5:40pm

वही भाई फिर आड़े वक्त मे इसी बहन से अपेक्षा रखेगे जिसे अभी उपेक्षित कर दिया| वाह दुनिया वाह दुनियादारी|

अच्छा संदेश दिया लघुकथा ने!!  

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 5:31pm

आदरणीय बहुत ही लाजवाब लघुकथा, अक्सर लोग रिश्तों को तराजू में तौलते हैं, मानसिक परिवर्तन कुछ इस तरह से होता है कि क्या कहें. एक कामयाब लघुकथा बहुत ही सुन्दरता आप अपनी बात करने में सफल रहे, मेरी ओर से बधाई प्रेषित है स्वीकार करें.

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 8, 2013 at 3:32pm


  आदरणीय विजय मिश्र जी आपने जिन शब्दों में , लघु-कथा  की प्रशंशा की है उससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद । उत्साहवर्धन के लिए  आपका आभारी  हूँ | 

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 3:19pm
कई रिश्ते एकसाथ मुँह बाये खड़ीं हैं और अपने बनते-बिगड़ते स्वरूपों की फरियाद चीख कर करना चाहती है . अभिव्यक्ति में आप पूर्णरूपेण सफल हैं ,गडमड होते रिश्तों पर आपकी कथा स्पष्ट और सुदृढ़ है .अनेक बधाई कपिशजी .
Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 8, 2013 at 7:36am

आदरणीय सुशील जोशी जी , प्रशंशा के लिए सादर धन्यवाद । 

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