ये जंग की घड़ी नहीं,
न देश ये गुलाम है ..
फिर क्यों हम आम जनता ,
इस देश में फटेहाल है?
हम उलझे है अपनी चिंताओ में ,
देश की हम सोचे भी क्या ??
हमे मार दिया महंगाई ने ,
भ्रष्टो का कर पायेंगे क्या??
बीता वर्ष घोटालो का था,
नए वर्ष में अब होगा क्या ?
आज हर और जब घोटाला है,
तो फिर कैसी ये व्यवस्था है..
कैसा ये जनतंत्र है,
जिसमे पीस रही जनता है??
हम सबने सुने है नेताओं के कुचर्चे,
पर किसी ने उनका अंजाम सूना??
जब…
Added by सन्नी on September 25, 2011 at 10:51pm — 3 Comments
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