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Hem Chandra Jha's Blog (2)

ये जमीं से या जाँ से उठता है

फाइलुन फाइलुन मुफाईलुन

(212 212 1222)



ये जमीं से या जाँ से उठता है

जो धुआँ है कहाँ से उठता है



ये जो गर्दो गुबार है क्या है

क्यों ये फिर कारवाँ से उठता है



हर तरफ शोर सा ये है कैसा

क्यों सदा आसमाँ से उठता है



जख्म सीने में पल रहा कोई

दर्द दिल के मकाँ से उठता है



दो कदम साथ क्या चले रहबर

अब धुआँ आँ-जहाँ से उठता है

 

इश्क को उम्र लग गयी शायद

दर्द अब जिस्मो जाँ से उठता है



दर्द को आह से सुकूँ…

Continue

Added by Hem Chandra Jha on March 31, 2016 at 12:00am — 4 Comments

कुण्डलिया छंद (मेरा एक प्रयास)

रोपे जो थे फूल सब, लगते पेड़ बबूल !

काँटों बदले बीज सब, जो मन राखा शूल !!

जो मन राखा शूल, ध्यान में धारण कीजे !

मिलता वही प्रतिफल, ध्यान में जो धर लीजे !!

कहे हेम कविराय, बुरा क्यों मन में सोचे !

रोपे  भले बबूल, मन से फूल ही रोपे  !!

.

मौसम के यह ढंग भी, लगते बड़े विचित्र !

शरद ऋतु मेँ दिखते हैं, गर्मी के परिदृश्य !!

गर्मी के परिदृश्य, कि मौसम बहुत चिढ़ाता !

कभी वर्षा ऋतु में, सुखार है अति सताता !!

कहे हेम कविराय, घटाओ अभी…

Continue

Added by Hem Chandra Jha on January 28, 2016 at 11:00am — 3 Comments

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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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