ग़ज़ल
मिलन की रात का लम्हा छुपा है
नज़र में बस तेरा चेहरा छुपा है
दुआ लेकर निकलना रोज़ घर से
यहाँ हर मोड़ पर ख़तरा छुपा है
लबों पर प्यास लेकर फिरने वाले
तेरे अंदर भी इक दरिया छुपा है
महकती है हमेशा ज़ीस्त यूँ भी
कि सांसों में तेरा गजरा छुपा है
सनम मत जा अभी ख़्वाबों से मेरे
अभी तो चाँद भी आधा छुपा है
'अहद' लिखना न होगा बंद मेरा
अभी दिल में बहुत लावा छुपा है !
मौलिक और…
ContinueAdded by AMIT on April 3, 2019 at 2:06pm — 7 Comments
Added by AMIT on September 26, 2017 at 6:58pm — 8 Comments
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