स्मृतियाॅ लेने लगी हैं आकार मूरतों का
स्मृतियाॅ वो....जो बह चली थी खुलते ही गाॅठ ओढनी की।
इक इक कर दाने यादों के आज के आॅगन में गिरने लगे
कुछ को देख हॅसी आॅखें,कुछ पे आॅखों से आॅसू गिरने लगे
कुछ जख्म नये देकर गये तो कुछ से जख्म पूराने भरने लगे।
कि स्मृतियाॅ................
खुशबुएॅ कुछ गुलाबों की करके कैद रखदी थी मैंने किताबों में
पन्ने फडफडानें लगे अतीत के औ होकर आजाद वो बहने लगी
पंख तितलियों के भी मिल गये कुछ बसीयत की तरह दबे दबे
कुछ ने गिले…
Added by vandaanamodi goyal on June 12, 2015 at 11:00am — 4 Comments
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