स्मृतियाॅ लेने लगी हैं आकार मूरतों का
स्मृतियाॅ वो....जो बह चली थी खुलते ही गाॅठ ओढनी की।
इक इक कर दाने यादों के आज के आॅगन में गिरने लगे
कुछ को देख हॅसी आॅखें,कुछ पे आॅखों से आॅसू गिरने लगे
कुछ जख्म नये देकर गये तो कुछ से जख्म पूराने भरने लगे।
कि स्मृतियाॅ................
खुशबुएॅ कुछ गुलाबों की करके कैद रखदी थी मैंने किताबों में
पन्ने फडफडानें लगे अतीत के औ होकर आजाद वो बहने लगी
पंख तितलियों के भी मिल गये कुछ बसीयत की तरह दबे दबे
कुछ ने गिले शिकवे किये और कुछ फिर से उडने लगी
कि स्मृतियाॅ...........
मोती समझ जो बाॅद्य दिये थे अश्क कभी मैंने पल्लू से
दरिया बन बह चले वेा,सागर में फिर गिरने लगे
चुबंन छूटे होठों के,पलको का शरमाना छूटा
सालों से जो बंद पडे थे,प्रणयद्धार के वो कुंडे टूटे।
कि स्मृतियाॅ........
जाने किसने ढीली करदी गाॅठे उन यादों की ओढनी से
द्यीरे द्यीरे आस जीवन की फिर से उल्लासित होने लगी
दिल मिलने लगे दिल से साॅसे मद्युमासित होने लगी
होठों के कंपन लौट रहे, पलके शरमाना सीख रही
नजरे मौन रहकर अर्थ प््रोम का समझाने लगी कि
स्मृतियाॅ................
व्ंदनामोदी गोयल, फरीदाबाद
Comment
shree samer kabeer shab shree suneel ji and shree gopal narayen ji aap sab ka rachna ko sarhaney ke liye dil se sukeriya
भावों का अच्छा और मुक्त प्रदर्शन है .
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