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जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |
सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1
बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |
तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2
मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |
बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3
खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |
फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4
हमें जिंदगी से अदावत मिली है |
इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5
लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |
वही तीर बन के सताने लगेंगे ||6
बढ़े हौंसले रास आने लगे हैं |
अँधेरे में दीपक जलाने लगेंगे |7
वो शफ्फाक किरणें ग़ज़ल गा रहीं हैं |
कुहासे घनेरे छकाने लगेंगे ||8
कमी ग़र किसी की कभी तुम दिखाओ |
वो आँखें तुम्हें तो दिखाने लगेंगे ||9
वो शामों-सहर है मुकद्दर बना यूँ |
उसी आग में हम नहाने लगेंगे ||10
तुम्हारी जो नफरत बढ़ाने लगे हैं |
वही आइने दिल दुखाने लगेंगे ||11
बड़ी ही अनोखी मुलाकात है ये |
वो तीरे नज़र के निशाने लगेंगे ||12
जिसे ख्वाब में रोज देखा किए थे |
उसे घर की जीनत बनाने लगेंगे ||13
ये कमजर्फ कैसी मुहब्बत हुई है |
हवस ही ज़मानत जताने लगेंगे ||14
अलामत तरस पैरहन मुहब्बत हुई है |
अकीदे की चादर बिछाने लगेंगे ||15
सदाकत रफाकत मुहब्बत करोगे |
अजीयत विरह की जताने लगेंगे ||16
वो गम-ए-दहर को मिला एक मंजर|
सहर-ए-हयात जगाने लगेंगे ||17
हिकारत कभी जो मुहब्बत बनेगी |
नज़र वो हमीं से चुराने लगेंगे ||18
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. अनीता जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है पर यह और समय चाहती है। कुछ सुझाव के साथ फिलहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
/बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |//यह मिसरा बह्र में नहीं है।
बनोगे जो भू के कभी चाँद सूरज" या
बनोगे धरा के अगर चाँद सूरज
वो आँखें तुम्हें को दिखाने लगेंगे ||9
बढ़ाते हैं नफरत अभी जो तुम्हारी
कि तीरे नज़र के निशाने लगेंगे ||12
जिसे ख्वाब में रोज देखा किए हम |
//अलामत तरस पैरहन मुहब्बत हुई है |/
सहर-ए-हयात जगाने लगेंगे ||17
ये मिसरे भी बह्र में नहीं है।
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