For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब हम काहे ना डरी डरे के कारन बा ,

हम काहे डरी डरे के कारन का ,
एक बेर एगो मुह्हला में ,
एगो आदमी घर बनावत रहे ,
मुह्हला के दादा रूपी इन्सान ,
ओकरा लगे बराबर आवत रहे ,
बार बार ओकरा से पाईसा मांगे ,
आउर ओके धमकावत रहे ,
उ इहे काहे हम काहे दिही ,
हम काहे डरी डरे के कारन का ,
उ दादा कहलस बाबु इ जान ला ,
पाईसा देबा हम सुरक्षा देम ,
कवनो परेशानी न होखे देम ,
रात में आराम से सुताबा ,
हम कहानी हमारा तोहसे ना,
जब पुलिश बा ता तहार का काम,
हम काहे डरी डरे के कारन का ,
घर बन गइल थोरा नुकसान भइल,
बालू सीमेंट आउर लोहा खुबे चोरी भइल,
पर हमर ना सब ठिकदार के गइल ,
उहो चलाक रहे ओने समझावता कईलस ,
सब हमारा बिल में धाईलस ,
जैसे तैसे बन गइल हमार काम ,
हम काहे डरी डरे के कारन का ,
अब हम इहा आ के रहे लगनी ,
बिना मतलब के परेशानी सहे लगनी ,
पुलिश में गइनी एके गो जबाब ,
क्लब में जाके समझ ली आप ,
हम थानेदार से कहानी रौआ का करेम
ता उ कहले बेसी बोलबा ता अन्दर क देम ,
अब हमहू ठोकत बानी दादा के सलाम ,
अब हम काहे ना डरी डरे के कारन बा ,

Views: 414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ratnesh Raman Pathak on April 22, 2010 at 6:44pm
गुरु जी ठीक कहल गइल बा की जेकरा जिव्हा पर सरस्वती के बास हो जाला ओकरा खातिर कौनो चीज कठिन न होखे ला .राउर इ कविता चिल्ला-चिल्ला के कह रहल बा की राउया जिव्हा पर साक्षात् सरस्वती के बास बा .परिस्थिति के तुरंत कविता में बदल देना कवनो मामूली बात नइखे ,हमर भगवन से इहे कामना बा की राउया के ओह उचाई पर ले जास जहा राउर प्रतिभा के सराहल जाओ और उचित सम्मान मिलो .धन्यवाद्

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 22, 2010 at 6:17pm
Rauwaa ta police aa dada log dono jana key kalaie khol key rakh dehaley baani aapan kavita mey, sahi kahat baani, am kahey na dari darey key karan ba, rauwaa jaha rahat baani woh jagah key sachaai key poora bardan kar rahal ba E raur kavita, bahut sahi, jai ho guru jee,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service