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विशेष लेख: देश का दुर्भाग्य : ४००० अभियंता बाबू बनने की राह पर -: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' :-

विशेष लेख:

देश का दुर्भाग्य : ४००० अभियंता बाबू बनने की राह पर

रोम जल रहा... नीरो बाँसुरी बजाता रहा...

-: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' :-

किसी देश का नव निर्माण करने में अभियंताओं से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका और किसी की नहीं हो सकती. भारत का दुर्भाग्य है कि यह देश प्रशासकों और नेताओं से संचालित है जिनकी दृष्टि में अभियंता की कीमत उपयोग कर फेंक दिए जानेवाले सामान से भी कम है. स्वाधीनता के पूर्व अंग्रेजों ने अभियंता को सर्वोच्च सम्मान देते हुए उन्हें प्रशासकों पर वरीयता दी. सिविल इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को 'सर' का सर्वोच्च सम्मान देकर धन्यता अनुभव की.

स्वतंत्रता के पश्चात् अभियंताओं के योगदान ने सुई तक आयत करनेवाले देश को विश्व के सर्वाधिक उन्नत देशों की टक्कर में खड़ा होने योग्य बना दिया पर उन्हें क्या मिला? विश्व के भ्रष्टतम नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों ने अभियंता का सतत शोषण किया. सभी अभियांत्रिकी संरचनाओं में प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी बना दिए गये. अनेक निगम बनाये गये जिन्हें अधिकारियों और नेताओं ने अपने स्वार्थ साधन और आर्थिक अनियमितताओं का केंद्र बना दिया और दीवालिया हो जाने पा भ्रष्टाचार का ठीकरा अभियंताओं के सिर पर फोड़ा. अपने लाड़ले गुंडों को ठेकेदार बनाकर, उनके लाभ के अनुसार नियम बनाकर, प्रशासनिक दबाब बनाकर अभियंताओं को प्रताड़ित कर अपने मन मर्जी से काम करना-करना और न मानने पर उन पर झूठे आरोप लगाना, उनकी पदोन्नति के रास्ते बंद कर देना, वेतनमान निर्धारण के समय कम से कम वेतनमान देना जैसे अनेक हथकंडों से प्रशासन ने अभियंताओं का न केवल मनोबल कुचल दिया अपितु उनका भविष्य ही अंधकारमय बना दिया.

इस देश में वकील, शिक्षक,चिकित्सक और बाबू सबके लिये न्यूनतम योग्यताएँ निर्धारित हैं किन्तु ठेकेदार जिसे हमेशा तकनीकी निर्माण कार्य करना है, के लिये कोई निर्धारित योग्यता नहीं है. ठेकेदार न तो तकनीक जानता है, न जानना चाहता है, वह कम से कम में काम निबटाकर अधिक से अधिक देयक चाहता है और इसके लिये अपने आका नेताओं और अफसरों का सहारा लेता है. कम वेतन के कारण आर्थिक अभाव झेलते अभियंता के सामने कार्यस्थल पर ठेकेदार के अनुसार चलने या ठेकेदार के गुर्गों के हाथों पिटकर बेइज्जत होने के अलावा दूसरा रस्ता नहीं रहता. सेना और पुलिस के बाद सर्वाधिक मृत्यु दर अभियंताओं की ही है. परिवार का पेट पलने के लिये मरने-मिटाने के स्थान पर अभियंता भी समय के अनुसार समझौता कर लेता है और जो नहीं कर पाता जीवन भार कार्यालय में बैठाल कर बाबू बना दिया जाता है.

शासकीय नीतियों की अदूरदर्शिता का दुष्परिणाम अब युवा अभियंताओं को भोगना पड़ रहा है. सरकारों के मंत्रियों और सचिवों ने अभियांत्रिकी शिक्षा निजी हाथों में देकर अरबों रुपयों कमाए. निजी महाविद्यालय इतनी बड़ी संख्या में बिना कुछ सोचे खोल दिए गये कि अब उनमें प्रवेश के लिये छात्रों का टोटा हो गया है. दूसरी तरफ भारी शुल्क देकर अभियांत्रिकी उपाधि अर्जित किये युवाओं के सामने रोजगार के लाले हैं. ठेकेदारी में लगनेवाली पूंजी के अभाव और राजनैतिक संरक्षण प्राप्त गुंडे ठेकेदारों के कारण सामान्य अभियंता इस पेशे को जानते हुए भी उसमें सक्रिय नहीं हो पाता तथा नौकरी तलाशता है. नौकरी में न्यूनतम पदोन्नति अवसर तथा न्योंतम वेतनमान के कारण अभियंता जब प्रशासनिक परीक्षाओं में बैठे तो उन्हें सर्वाधिक सफलता मिली किन्तु सब अभियंता तो इन पदों की कम संख्या के कारण इनमें आ नहीं सकते. फलतः अब अभियंता बैंकों में लिपिकीय कार्यों में जाने को विवश हैं.

गत दिनों स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की लिपिकवर्गीय सेवाओं में २०० से अधिक अभियांत्रिकी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त तथा ३८०० से अधिक अभियांत्रिकी स्नातक चयनित हुए हैं. इनमें से हर अभियंता को अभियांत्रिकी की शिक्षा देने में देश का लाखों रूपया खर्च हुआ है और अब वे राष्ट्र निर्माण करने के स्थान पर प्रशासन के अंग बनकर देश की अर्थ व्यवस्था पर भार बन जायेंगे. वे कोई निर्माण या कुछ उत्पादन करने के स्थान पर अनुत्पादक कार्य करेंगे. वे देश की राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के स्थान पर देश का राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति व्यय बढ़ाएंगे किन्तु इस भयावह स्थिति की कोई चिंता नेताओं और अफसरों को नहीं है.

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 6, 2010 at 3:41pm
मैं आचार्य जी से पूरी तरह सहमत हूँ और इस लेख के लिए उनको साधुवाद देता हूँ। साथ ही यह भी चाहता हूँ कि इस मुद्दे को मीडिया में हर जगह उछाला जाय और ठेकेदारों के लिए भी तकनीकी शिक्षा अनिवार्य बनाई जाय।
Comment by Pooja Singh on October 5, 2010 at 12:41pm
आदरणीय आचार्य जी ,
प्रणाम आपने बिलकुल सही लिखा है की शासकीय नीतियों का दुष्परिणाम अब युवा वर्ग को भोगना पड़ रहा है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 5, 2010 at 9:57am
आदरणीय आचार्य जी, आपने अभियंताओं के दर्द को बड़े ही मार्मिक और तथ्यपरक रूप से उजागर किया है, यह बड़ा ही दुखद स्थिति है कि अभियांत्रिकी कि डिग्री प्राप्त कर अभियंता बाबू बनने को लालायित है, इतना ही नहीं कुछ साल पहले रेलवे में गैंग मैन की भर्ती के लिये भी कई डिप्लोमा और डिग्री इंजिनियर आवेदन दिये थे, मैं यह मानता हूँ की देश मे बेरोजगारी है पर इसका यह मतलब नहीं की चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के लिये इंजिनियर आवेदन करे, आज भी देश मे इंजिनियर की मांग है, हां यदि आपने पैसा देकर डिग्री खरीदी है तो बात ही अलग है, कई फर्जी संस्थान ऐसी डिग्रिया बाटने का काम कर रही है, एक राजस्थान का डीम्ड विश्वविद्यालय है जो दूरस्थ शिक्षा से अभियांत्रिक डिग्री बात रही है, पटना सहित देश के कई हिस्से मे इसका परीक्षा केन्द्र होता है जहा जून और दिसंबर महीने मे लड़को की भीड़ लगती है, भीड़ का आलम यह होता है कि पटना जैसे शहर मे होटल मिलना मुश्किल है | जबकि दूरस्थ शिक्षा से तकनिकी कोर्से चलाने के लिये मान्यता देने वाली संस्था सुचना के अधिकार के तहत पूछे गये प्रश्न के जबाब मे साफ़ साफ़ कही है कि इस संस्थान को उनके द्वारा मान्यता नहीं दी गई है,
मैं सम्बंधित कागजात का संकलन कर रहा हूँ फिर मैं उस फर्जी डिग्री बाटने वाली संस्था का नाम भी यहाँ लिखूंगा|

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