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हे वनराज ! तुम निंदनीय हो !
अक्षम हो प्रजारक्षा में,
असमर्थ हो हमारी प्राचीन
गौरवपूर्ण विरासत सँभालने में ;
आक्रांता लाँघ रहे हैं सीमायें,
नित्य कर रहे हैं अतिक्रमण
हमारी भावनाओं का,
रौंद रहे हैं किसलयों को,
धधका रहे हैं दावानल,
नोच-नोच तोड़ रहे हैं घोंसले
सदियों से बसे खगों के,
आतुर हैं इस कानन को
नर्क बनाने के लिए ;
और तुम ! शांतचित्त मूक हो !
मात्र निर्विवाद होने की अभिलाषा से !
केवल तुष्टिकरण के लिए !
हे मृगेंद्र ! धिक्कार है तुमपर !
राजधर्म का पालन नहीं कर सकते
तो त्याग दो सिंहासन,
उतार दो ये मुकुट,
फेंक दो वो तलवार जो जंग खा चुकी है
बरसों से म्यान में पड़े-पड़े ;
हमें किंचित मात्र आवश्यकता नहीं
ऐसे शासक की,
हम पशु कर लेंगे अपनी सुरक्षा,
रह लेंगे अधिक सुख से
अपनी मातृभूमि पर,
अपने वन में, अपनी मांद में |

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 18, 2012 at 6:51am
आदरणीया सीमा जी, ये तुष्टिकरण की ही नीति है जो देश में कई कश्मीर और पाकिस्तान बना रही है। परंतु ये नीति आज की नहीं बल्कि पुरानी है। देश सबका है तो सबके अधिकार भी समान होने चाहिए। किसी एक वर्ग की असभ्यता को प्रोत्साहन क्यों?
प्रतिक्रिया देने के लिए आभार...
Comment by seema agrawal on August 18, 2012 at 12:52am

और तुम ! शांतचित्त मूक हो !
मात्र निर्विवाद होने की अभिलाषा से !
केवल तुष्टिकरण के लिए !.....................और ये तुष्टिकरण किसका ?क्या यह विवाद का विषय नहीं पर बात वही जिसकी लाठी .....................................................उसकी भैस ...

 

 

?

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 17, 2012 at 5:26pm
आदरणीया रेखा जी, आपका हार्दिक आभार। जिस वन का राजा अयोग्य हो, उसके पतन में अधिक समय नहीं लगता। ऐसे राजा का होना, उसके न होने से अधिक हानिकारक है।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 17, 2012 at 5:21pm
आदरणीया राजेश जी, आपका हार्दिक आभार। आपका अनुमान शत-प्रतिशत सही है। आज असम अगर सुलग रहा है तो उसका कारण वो अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं परंतु महाराज उन्हें निकालने के बजाए विवशता से घिसे-पिटे भाषण दे रहे हैं। ऐसे शासक का क्या लाभ?
Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 5:01pm

हमें किंचित मात्र आवश्यकता नहीं
ऐसे शासक की,
हम पशु कर लेंगे अपनी सुरक्षा,
रह लेंगे अधिक सुख से
अपनी मातृभूमि पर,
अपने वन में, अपनी मांद में |,बहुत बढ़िया कटाक्ष गौरव जी ,बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 4:26pm

अगर मैं सही हूँ तो इशारा /कटाक्ष हमारे देश के राजा पर है ???बहुत जबरदस्त !! अगर प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है और तुम उसकी रक्षा करने में असमर्थ हो तो मूक बधिर बने रहने से अच्छा है त्याग दो ये सिंहासन 

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