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शहर के बड़े चैराहे पर

जो बड़ी दीवार है

उसके पास से गुजरते हुए

अक्सर मन होता है

लिख दूं उस पर

‘लोकतंत्र’

लाल स्याही से।

 

एक बड़ा लाल चमकता हुआ

‘लोकतंत्र’

जो दूर से साफ चमके।

 

जब भी होता हूं वहां

कांव कांव करता एक कौआ

आ बैठता है दीवार पर

मानो आहवाहन करता हो

‘आंव, आंव

लिख दो इस दीवार पर

जग जाएं पशु, पक्षी, लोग

ढूंढकर निकाली जा सके

फाइलों और योजनाओं के

बोझ तले दबी जनता’।

 

कभी कभी हाथ उठते भी हैं

लेकिन कायर दिमाग

अनुमति नहीं देता।

 

दिमाग याद करता है

जब एक कवि ने

कोशिश की थी पहले

‘लोकतंत्र’ लिखने की

इसी दीवार पर।

अभी लिख ही पाया था ‘ल’

कि मिटा दी गयी इबारत

पोत दी गयी दीवार

झक सफेद रंग से।

वह कवि

तब से गायब है।

           - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 9:26pm

आदरणीया कुंती जी आपकी विस्तृत टिप्पणी ने साहस बढ़ाया। आपके शब्दों से लगा कि मेरा प्रयास कुछ सफल हुआ।
आपका हार्दिक आभार!
सादर!

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:43pm

आपकी रचना की लय पर थिरखती आखें जब अचानक विराम पाकर रुकती है तो दिमाग कुछ पल के लिये रुक जाता है और दिल सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वक्त के गर्त में न जाने कितनी ऐसी आवाज़ें दफ़न है जो उठने से पहले ही दबा दी गयी है........कवि की क्रांतिकारी दिमाग कभी चुप बैठने वाला नहीं है.

वाक्य विन्यास व शैली का क्रम लय में कोई बाधक नहीं.

ठांव ठांव ...आंव आंव जैसे युग्म शब्द इस रचना में जान फूक दी है.

भाव और रचना का उद्देश्य स्पष्ट है.

कवि की क्रांतिकारी हृदय को सार्थक करता है.

कुल मिलाकर एक स्वस्थ व सफ़ल प्रस्तुति.

सादर

कुंती.

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 7:19pm

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 7:18pm

आदरणीय भाई ब्रिजेश जी बहुत ही सत्य व् सटीक बात कही है आपने/
/हार्दिक बधाई आपको ///बहुत ही सुन्दर रचना //सादर////

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 5:48pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार!
आपका आशीष मेरे लिए वरदान सरीखा है।
सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 5:38pm

ब्रजेश जी यहाँ हर कोई अकेला चना है ,क्यों की संगठन भी विफल होते देखे गए हैं  कैसे सामना करेगा भ्रष्ट शासन तंत्र का ? अच्छा कटाक्ष किया है आक्रोशित मन से निकले भाव बहुत बढ़िया बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 5:36pm

आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार! आपका आशीष मुझे सदैव बल प्रदान करता है।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 5:34pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! आप जैसा पाठक ही हम जैसों को हौसला प्रदान करता है।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 5:33pm

आदरणीय लाडलीवाल जी आपका हार्दिक आभार! आपकी कुण्डलियां बहुत सुन्दर हैं।
सादर!

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 5:31pm

आदरणीय बसंत जी आपका हार्दिक आभार!
आपसे एक निवेदन कि कृपया सर सम्बोधन न प्रयोग किया करें मेरे लिए। मैं बहुत छोटा आदमी हूॅं और ब्रिटेन की सरकार ऐसे छोटे मोटे लोगों को यह पदवी नहीं देती। :))))))))))))

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