For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रेत  उड़ती  रही  धरा  बेबस

गजल -  2122, 1212, 22

पथ के पत्थर कहे परी हो क्या?
ठोकरों से कभी बची हो क्या ?


रात  ठहरी  हुयी   सितारों  में,
दोस्तों, चॉंद की खुशी हो क्या ?


लूटते  रोशनी  अमावस  जो,
दास्तां आज भी सही हो क्या ?


आदमी धर्म - जाति का खंजर,
आग ही आग आदमी हो क्या ?


रोशनी आज भी नहीं आयी,
राह की भीड़ में फसी हो क्या ?


रेत  उड़ती  रही  धरा  बेबस,
अब हवा धूप आदमी हो क्या ?


दास्तां  राज  की  जुबां  चुप  है,
शब्द सीने  में ढ़ूंढ़ती  हो क्या ?


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 6:58pm

आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! सर जी आप की राय से मैं भी सहमत हूँं।  एक बात स्पष्ट है कि मेरा मंतव्य कुछ ज्यादा मेहनत मांगता है। वैसे इन शेरों को मैंने ही छॉंट दिया था, किन्तु बाद में आंशिक संशोधन के बाद अजमाया, चूॅंकि अभी गजल पर विश्वास दृढ़ नहीं हो पाया है। इसलिए ही यह प्रस्तुति झलक सकी। भविष्य में ध्यान रखंूगा।  आपकी उप-िस्थति हेतु तहेदिल से आभार।  सादर, 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:13am

केवल भाई, मैं भाई अरुन अनन्त जी के कहे से सहमति जता रहा हूँ. बह्र के अनुसार कुछ शब्द लगे हैं, मुझे अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया.

वैसे मैं कुछ और प्रयास करूँगा.

शुभेच्छाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 6:59pm

आ0 अरून अनन्त भाई,   आपके मार्गदर्शन को गंभीरता से लेने हेतु प्रतिबध्द हूं। किन्तु कुछ बात तो अवश्य है, जो यह गजल पास हो गई।  आपके स्नेह और उदारता हेतु आपका बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 6:57pm
आ0 सचिन भाई, आपके स्नेह हेतु आपका बहुत बहुत आभार। सादर,
Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 3:22pm

आदरणीय केवल भाई जी अन्यथा मत लीजियेगा मैंने आपकी ग़ज़ल तीन - चार दफा पढ़ी किन्तु स्पष्ट नहीं लगी आपके ख्याल से मेरे ख्याल मेल नहीं खाए या फिर अल्पमत के कारण मेरे पल्ले नहीं पड़ी. क्षमा चाहता हूँ

Comment by Sachin Dev on March 26, 2014 at 1:28pm

बहुत खूबसूरत गजल आदरणीय भाई केवल प्रसाद जी .... हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद में चित्रानुकूल भाव ----- ब्रह्मा जी के आगे कौआ, रोया निज दुख गाया,इस जग में सब करते नफरत,…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, सौरभ साहब, आपने मेरी प्रस्तुति को संस्तुत किया, इसके लिए हृदय से आपका आभारी हूँ, श्री जी।…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपकी प्रस्तुति का स्वागत है, आदरणीयचेतन प्रकाश जी। चित्र के मर्म को आपने समझा, तदनुरूप…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद  [ छन्न पकैया ] ++++++++++++++++++   छन्न पकैया छन्न पकैया,क्वाँर मास में…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंदः श्राद्ध पितृ-पक्ष आवश्यक है, उद्धार हेतु आत्मा करें हुतात्मा के हित तर्पण, मिले उन्हें…"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो. . ये रौशन ज़मीरी अमल एक…See More
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 171 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई श्यामनाराण जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service