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घनाक्षरी- (कलाधर) -छन्द........होली....!

घनाक्षरी- (कलाधर) -छन्द........होली....!
गुरू लघु गुणे 15 अन्त में एक गुरू कुल 31 वर्ण होते हैं।

अंग अंग में तरंग, बोलचाल में बिहंग, धूप सृष्टि में रसाल, बौर रूप आम है।
रूप रंग बाग लिए, अग्नि बाण ढाक लिए, शम्भु ने कहा अनंग, सौम्य रूप काम है।।
प्राण-प्राण में उमंग, रास रंग में बसंत, ऊंच - नीच, भेद - भाव, टूटता धड़ाम है।
प्रेम का प्रसंग फाग, रंग - भंग भी सुहाग, अंग से मिला सुअंग, हर्ष को प्रणाम है।।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 1:56am

बसंत के वातावरण की मादकता को शब्दबद्ध करने का बेहतर प्रयास हुआ है, भाई केवल प्रसादजी.

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2014 at 8:27pm

आ0 भण्डारी भाई जी,  आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 11:01am

आदरणीय , मज़ा आ गया पढ कर , बहुत खूब सूरत छंद रचना की है , बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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