बीज मन्त्र..................!
दोहा- बीज बीज से बन रहा, बीज बनाता कौन?
बीज सकल संसार ही, बीज मन्त्र बस मौन।।
चौ0- निष्ठुर बीज गया गहरे में। संशय शोक हुआ पहरे में।।
मां की आखों का वह तारा। दिल का टुकड़ा बड़ा दुलारा।।
सींचा तन को दूध पिलाकर। दीन धर्म की कथा सुनाकर।।
बड़े प्रेम से सिर सहलाती। अंकुर की महिमा समझाती।।
शिशु की गहरी निन्द्रा टूटी। अहं द्वेष माया भी छूटी।।
अंकुर ने जब ली अॅंगड़ार्इ। फूटा जोश रवानी आर्इ।।
सारे कुल को कर उजियारा। द्वेष रहित निश्छल अतिप्यारा।।
हर्षित पुलकित मन मतवाला। प्रेम सरस रस तन का प्याला।।
बहकी झूम-झूम पुरवार्इ। दिग्दिगन्त सुगंध फैलार्इ।।
फसल बढ़ी ज्यों फूली सरसों। होली में जन मन त्यों हर्षो।।
संशय जाति धर्म के कुनबे। पानी-खाद सॅंवारें बलबे।।
फसल कड़क कर इकदिन बोली। मैं ही जीवन रक्षक गोली।।
भरे खेत में मोती दाने। चुॅंगती चिडि़यॉं जीव दीवाने।।
अहं द्वेष फिर से गहराया। माया जड़ ने मन भरमाया।।
कृषक सत्य मन अति गुणकारी। भोर हुआ निश गर्इ ससुरारी।।
कर में हॅंसिया चपल उठाकर। सॉंझ ढले तक फसल कटा कर।।
कहे सत्य हे! मूरख कामी। स्वयं देव का बनता स्वामी।।
समय नहीं है एक समाना। बाल-युवा-जर-मृत्यु बहाना।।
सहज रीति नित प्रीति लुटाए। अकड़ नीति रत धूल चटाए।।
बीज वृक्ष बन बीज सॅंवारें। बीज मन्त्र बन कर संहारे।।
मानव जन्म हुआ सत्कारी। फूलो फलो बनों हितकारी।।
छुद्र बीज बनता जब बरगद। सकल जीव को छाया गदगद।।
कण से पर्वत पर्वत ही रज। बूंद सिन्धु सम फैला अचरज।।
कर्म शक्ति ही उर का स्वामी। सदगुरू समरस आत्मा रामी।।
दोहा- मैं तुम हूं तुम स्वयं हो, तुम्हीं जगत के मूल।
मैं माया मन में मरी, तुम ही तेज त्रिशूल।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाव-भावना और विचारों को शब्दबद्ध करने में आपको सफलता मिली है, भाई केवल प्रसादजी.
वैसे कुछ गढ़ भावों को आप शब्द देते समय ऐसे शब्दों को भी स्थान दे देते हैं जिनका होना पूरी पंक्ति या वाक्यांश को ही असंप्रेषणीय बना देता हुआ लगता है. जैसे, बीज का निष्ठुर होना, जबकि आगे उसके उन्नत भावों और कर्म की चर्चा है. या, बीज के धरती में जाते ही शोक-संशय का पहरे में होना ! ये ऐसे ही कुछ उद्धरण हैं.
फिर, आखिरी दोहे का पहल चरण ही शिल्प के अनुसार गलत है.
लेकिन ये तो हुई शिल्पगत या संप्रेषण की बातें.
कविता के स्तर पर यह रचना आध्यात्मिक मनोदशा में क्रियाशीलता का सुन्दर बखान है. ऐसी रचना के लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
आ0 भण्डारी भार्इ जी, सादर प्रणाम! रचना पर आपकी उपस्थिति, स्नेह एवं उत्साहवर्धन मुझे अत्यधिक प्रभावित करती है। आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 कुन्ती जी, सादर प्रणाम! रचना पर आपकी उपस्थिति, स्नेह एवं उत्साहवर्धन मुझे अत्यधिक प्रभावित करती है। आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरनीय केवल भाई , बहुत सुन्दर आध्यात्मिक समझ की रचना हुई है , मेरी दिली बधाई स्वीकार करें ॥
बहुत सुंदर रचना है. केवल जी मनमें अनायास आध्यात्मिक भावना जाग उठी. साधुवाद.
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