For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय अभी 

मै न चाहते हुए भी आज उन स्थानों  पर कभी-कभी पहुँच जाता हूँ,जहां कभी अपने प्रेम के बहारो के फूल खिले थे , ना जाने कितने आरजुओ ने जन्म लिए थे जब कभी मै उन जगहों पर जाता हूँ तो हमेशा मेरी नज़र उन जगहों को देखती है जहां हम साथ चले थे , मेरे होठो पर तुम्हारा नाम बरबस ही आ जता है,मेरी नज़रे शायद तुम्हारे पद चिन्हों को ठुंठती है ! पर उसे असफलता ही हाँथ लगाती है, तब मुझे यह एहसास होता है की एक गरीब आदमी कितना असमर्थ होता है ! और एक आमिर आदमी कितना खुदकिस्मत वाला होता है ! क्या आप मुझसे सचमच प्यार किये थे ,आप के दूर होने के कारण को जब मैंने समझा तो मुझे यैसा लगा मानो युगों का साथ अब पलों  में छुट रहा है,  "अभी, प्रेम जब मानव के शरीर में दस्तक देता है !    तो उसके दिल में दबी हुई धड़कने अपना असर दिखाने लगाती है ! अपने प्रीतम के दीदार को आँखे बेचैन होने लगाती है,क्या आपको एह सब महसूस नहीं हुवा,

तुम्हें पता नहीं की तुम्हारी मीठी याद मुझे बेचैनी की गहरे भंवर में डूबा ले जा रही है,क्या मै इस प्रेम भंवर से निकल पाऊँगा,मै तो प्रेम में निर्जीव एक सादा इंसान था,मुझे प्रेम जीवन देनेवाली आप थी क्या आप को इसकी भी सुध नहीं की आप मुझे कहाँ लाकर छोड़ रहे हो,मैंने आप को टूट कर चाहा,क्या मैंने कोई गलती की "अभी,                  "अभी,मैंने मेरे प्यार को अपने दिल के रक्त से सीचा था ! मेरे ह्रदय का रक्त इतना फीका था,की वक्त ने अपना असर दिखा दिया ! लोग कहते है "अभी" जहां प्यार होता है वही सुख़ ,और जहां प्रेम नहीं वहां जीवन कैसा ,सुख़-दुःख,अमीरी-गरीबी,बेबसी ऐ सब प्यार के समक्ष बहुत कमजोर होते है,ऐ मैंने ,नहीं अपितु आप का ही कहा शब्द था आप ही ने कहा था की अगर हमें हमारा प्यार नहीं मिला तो हम सारे रिस्तो को ठोकर मार दूंगी,फिर आप सारे रिश्ते अपनाकर मुझे ही ठोकर क्यूँ मारा क्या तुम्हारे दिए गए शब्द,किये गए वादे सब मतलबी और झूठे थे ! ........................ 

Views: 414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 17, 2011 at 4:42pm

 

तपन जी ,

बहुत धन्यवाद,पर क्या करे बारह वर्षो का अपना साथ था,

मैंने उन्हें खुली नहीं बंद आँखों में बसाया था,

जो रूठी है जो किस्मत आज जो उन्हें तक़दीर बनाया था.............. 

Comment by Tapan Dubey on March 17, 2011 at 4:02pm

मे उसका हू ये राज तो वो जान गई है "फ़राज़"

वो किस्की हे ये सवाल मुझे सोने नही देता

 

 

 

 

 

 

 

sanjay ji-

 

खुली आँखो को चार मत करना

तुम सितारे शुमार मत करना

दोस्तो वाहा अंधेरा है बहुत

मशव्ररा है की प्यार मत करना

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 16, 2011 at 1:17pm
इंसान कभी-कभी कितना बेबस और लाचार हो जाता है की उसे अपनी ही जिंदगी प्रश्न लगने लगती है, उनकी तो चाहत यैसी थी की कभी ओ मजबूर हो जायेंगे इसका एहसास ही नहीं हुवा   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service