किसने कहा प्रेम अंधा होता है
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किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की भावनायें भी , कचरों के जैसे
प्रेम के साथ साथ, पर प्रेम से अलग
बिना भीगे उन व्यर्थ की भावनाओं से
जैसे कमल का पत्ता पानी रह के भी गीला नहीं होता
सब कुछ दिख रहा है , महसूस हो रहा है
उसे विश्वास है
सागर के प्रेम की पूर्णता पर भी
वो भी सब कुछ देखते हुये भी
समाहित कर लेगा खुद में, सब कुछ के साथ
क्योंकि प्रेम होता है तो पूर्ण ही होता है
आधा अधूरा तो व्यापार होता हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ॥
बहुत खूब, आदरणीय गिरिराज जी. आपकी द्वारा रचित इस गहन अभिव्यक्ति से हर तरह से स्पष्ट होता है कि प्रेम अँधा नहीं होता
.प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई.
आदरणीय भाई साब इक नया चिंतन देते इस शसक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी ॥
अनुज
यह भी एक अंदाज है . नजरिया है . बढ़िया है .
आदरणीय मिथिलेश भाई , मै एक ही बार पोस्ट किया हूँ , अप्रूभल के समय शायद क्लिक दो बार हो गया होगा ।
आदरणीय प्रधान सम्पादक जी से प्रार्थना है कि एक पोस्ट को डिलिट करने की कृपा करें , जिसमें किसी पाठक की प्रतिक्रिया नही है ॥
॥ सादर निवेदित ॥
आदरणीय गिरिराज सर एक ही रचना दो बार पोस्ट हो गई है.
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:649508
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:649409
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