बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’
अरकान - 212 212 212 212
हो के मुझसे तू ऐसे खफ़ा ज़िन्दगी |
जा बसी है कहाँ तू बता ज़िन्दगी|
जग को ठुकरा दिया मैंने तेरे लिए,
कर न पायी तू मुझसे वफ़ा ज़िन्दगी|
तेरी सूरत ही थी मेरा दर्पण सदा,
तू मिले फिर सजूँ इक दफा ज़िन्दगी|
तू हंसाती भी है और रुलाती भी है,
तू दिखाती है क्या क्या अदा ज़िन्दगी|
पहले इतना बता क्या है मेरी ख़ता,
फिर जो चाहे तू देना सज़ा ज़िन्दगी|
मिस्ले महबूबा तुझको सजाऊंगा मै,
मुझसे होना कभी मत जुदा ज़िन्दगी|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नारायण जी ..............बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर |
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