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2212 2212 2212
रिश्ता कभी गहरा कभी घायल लगा
अाँसू कहाँ अबतक भला कहकर बहा?1

डगमग हुई नैया कभी मझधार में
नाविक सजग पतवार ले खेता रहा।2

ढूँढे बहुत मिलती नहीं है चीज जब
हँसता हुआ भी आदमी रोता बड़ा।3

बसती रही हैं चाह में कलियाँ मगर
किस्मत बदा वह झेलता काँटा चला।4

रहता बगल में आदमी क्षण भर कभी
पल में मुखालिफ हो गया क्यूँ मनचला?5

जीती भले ही जंग है अबतक बहुत
लगता रहा क्यूँ हार पर है कहकहा।6

डरता नहीं है चोट खाने से 'मनन'
चलता रहेगा चाहतों का सिलसिला।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on August 27, 2016 at 12:05pm
आदरणीय गिरिराज भाई का सलाह पर परिमार्जन हुआ,आभार आपकी आ. गिरिराज भाई।
Comment by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 1:11pm
आभार आपका आ. गिरिराज भाई!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 11:09am

आदरनीय मनन भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

अाँसू बता कब बोल करके है बहा?  --  बोल कर के   लिखना सही नही है --   इसे ऐसा किया जा सकता है
आँसू बता तू बोल के कब है  बहा 
वैसे ही --
ढूँढा बहुत मिलती नहीं है जिंस जब      ---  ढूँढे अगर मिलती नही है चीज़ जब    ( चाहें तो ऐसा कर लें )
हँसता हुआ भी आदमी रोता बड़ा।3

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