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१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २

याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए

जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |

गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते 

सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |

मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले

शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ? 

मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ

जले शमअ कोई शमो के लिए  |

मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ

जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |

मौलिक और अप्रकाशित   

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Comment

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Comment by Samar kabeer on August 28, 2016 at 11:05pm
इसमें कष्ट की कोई बात नहीं ,ये तो मेरा धर्म है,मुझसे जो भी सेवा बन पड़ेगी ,ज़रूर करूँगा, स्नेह बनाये रखें ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on August 28, 2016 at 8:50pm

आदरणीय समर कबीर साहब ,आदाब , बहुत बहुत धन्यवाद आपका | और को उर कर सकते है ,मुझे पता नहीं था | एक निवेदन करना चाहूँगा | ग़ज़ल मैंने आभी अभी सीखना शुरू किया है | गलती होना स्वाभाविक है | मैं इसी ब्लॉग में स्वरचित ग़ज़ल पोस्ट करता रहूँगा | कृपा होगी अगर समय निकाल कर एक बार आप देख ले | आपसे ज्यादा  अच्छी तरह मेरी गलती कोई और पकड़ नहीं पायगा |

कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूँ |

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 27, 2016 at 8:04pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,आपका संशय दूर करने की कोशिश करता हूँ :-
मकाँ उर/122/दुकानें/122/सभी हैं/122/यहाँ/12
जवां के/122/लिये ना/122/बड़ों के/122/लिये/12
"और"को "उर"भी कर सकते हैं ।
"शमा"का बहुवचन "शमओं"या "शमएं"होता है ।
उम्मीद है आप मुतमइन हो गए होंगे ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on August 26, 2016 at 10:10pm

आदरणीय समीर कबीर साहिब आदाब ,

मकाँ १२ और २१ दुकाने १२२ सभी १२ हैं २ यहाँ १२ 

१२२ /११२ /२१२/ २१२  हों रहा है 

सानी में 

१२ २/  १२ १ /१ २ २ /१२  दुसरे अरकान १२२ के स्थान पर १२१ हो रहा है |  कृपया विस्तार से बताने की कष्ट करें | यह बहर से बाहर नहीं हो रहा है ?

शमअ  का  बहुवचन क्या होगा, कृपया बताएं 

सादर 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2016 at 6:28pm
जनाब कालीपद प्रसाद जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में क़ाफ़िया समझ नहीं पाया कृपया "शमो"का अर्थ बताएं ।
आख़री शैर में "मकाने"शब्द सही नहीं,ये शैर इस तरह होना चाहिए:-
"मकाँ और दुकानें सभी हैं यहाँ
जवां के लिये न बड़ों के लिये "

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