For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खाना नहीं पर गाना जरूर

अगर दुनियां में आज लोग दुखी हैं तो उसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार में उन जैसे लोगों को मानता हूँ जो खाते कम गाते ज्यादा हैं

आप बहुचर्चित food shows का उदाहरण ले सकते हैं जिसमें आपको आसानी से एक महिला या पुरुष दिख जायेगा जो खाना चखने के दौरान अजीब अजीब आवाजें निकालना शुरू कर देता हैं
उनके चटकारे देखकर, देखने वाले मनुष्य को अपना अच्छा खासा स्वादिष्ट भोजन भी कम स्वादिष्ट लगने लगे इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं

किसी महापुरुष से सुना था के मनुष्य इस बात से दुखी नहीं के उसके घर में अँधेरा है
वो इस बात से दुखी है के उसके घर में पड़ोसी के घर जितना उजाला क्यों नहीं है

ये समस्या और खतरनाक जब हो जाती है जब पड़ोसी के घर में भी अँधेरा होने की बावजूद भी उजाला प्रतीत होने लगे
और ऐसी प्रतीति को कराने में आजकल के पड़ोसी बड़े ही पारंगत हो गए हैं
पड़ोसी से मेरा तात्पर्य उन लोगों से है जिनसे हम जीवन में सीधे या परोक्ष रूप से interact करते हैं, या फिर कह सकते हैं के वो लोग जिन्हें हम अपने विचारों में जगह देते हैं

हाँ तो में ये कह रहा था के आजकल ऐसे 'कम खाने और ज्यादा गाने' वाले लोग अपनी इस कला में काफी होशियार हो गए हैं
आपकी संपत्ति कितनी भी पुरानी और कबाड़ा क्यों ना हो पर अगर आपको जबरदस्ती की detailing निकलने का ज्ञान प्राप्त है तो वही संपत्ति antique बन सकती है

हवाई जहाज में air hostess को गहराई से मुस्कराते देख लें तो आजकल की sophisticated महिलाओं को लग सकता है के जीवन का असली सुख तो बेवक्त हवा में उड़ने में और यात्रियों की जी हुजूरी करने में ही है

फोटो में अपने दोस्तों को Gate way of india के सामने खड़े होकर विचित्र विचित्र poses में आत्मविभोर होते देख किसी का भी मन उस चर्चित इमारत को देखने के लिए लालाहित हो सकता है जिसे आगे भीड़ भरी सड़क और पीछे गंदगी भरे समुंदर के इलावा कुछ नहीं

बड़े बड़े अभिनेता अभिनेत्रियों और Page 3 के लोगों को देख कर उनके जीवन में आनंद की बाड़ होने का जब हम अंदाज़ा लगा लेते हैं तो हम ये भूल जाते हैं के उन्ही महानुभावों को जीवन के सहज सुख के लिए भी शराब की बेहोशी में डूबे रहना पड़ता है

अब बेचारे दुखी लोग भी क्या करें
काश उन्हें भी पांच सितारा होटल के कमरे सोने को मिल पता तो वो भी जान पाते के नींद अपने छोटे से घर के कमरे में ज्यादा अच्छी आती है
वो तो बेचारे उन मह्त्वकान्षाओं की अग्नि में जलते रहते हैं जिनका आनंद के जगत में कोई महत्व नहीं

अकसर ये देखा गया है के मनुष्य अपनी महत्वकान्षाओं के पूर्ण हो जाने पर एक निराशा से भर जाता है
के जिस सुख की उसने कल्पना इस मुकाम पर की थी वैसा सुख उसे क्यों प्राप्त नहीं हो रहा.. और वो सोचता रहता है के जरूर कुछ कमी रह गयी शायद
और फिर से वो उन्ही कमियों को पूरा करने के चक्कर में भागने लगता है और जीवन भर असंतुष्ट रहता है
वरना कोई कारण नहीं बनता के आजकल के वृद्ध भी इतने असंतुष्ट और फितूली नज़र आते हैं


अपने अब तक के जीवन में तो बस इतना जान पाया हूँ जी
के 'जब नींद अच्छी आती है ना, तो सपने भी नहीं आते'
उम्मीद है आप समझ गए होंगे..

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 24, 2011 at 10:39am
स्वागत है भाष्कर जी |
Comment by Bhasker Agrawal on June 24, 2011 at 10:35am

धन्यवाद गणेश जी 

धन्यवाद आशीष भाई 

Comment by आशीष यादव on June 24, 2011 at 6:33am
Bilkul sahi topic par lekh h bhaiya. Aaj k isthiti bilkul yhi h. Log dukhi isiliye h ki wo khush kyo h, mai us jaisa shirt nhi le sakta to mere andar uske sirt ko fadne ki ichchha aa jati h.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 23, 2011 at 10:16pm
भाष्कर जी बहुत ही सामयिक और सटीक आलेख लिखा है आपने, बधाई आपको |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service