प्रेम हम तुम पर लुटाने आ गये।
 आज फिर देखो सताने आ गये।
 
 चूम अधरों को तुम्हारे अब प्रिये,
 लालिमा इनकी बढ़ाने आ गये।
 
 लाज से हैं झुक रहे तेरे नयन,
 आज हम इनको लुभाने आ गये।
 
 देख यौवन की छटा मधुरिम शुभे,
 प्रेम रस में हम डुबाने आ गये।
 
 छूटता है जो नहीं प्रिय उम्र भर,
 रंग हम ऐसा लगाने आ गये।
 
 रूप से छलके सुरा जो मद भरी,
 आज हम पीने पिलाने आ गये।
 
 -विमल शर्मा 'विमल'
 स्वरचित एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणी अग्रज लक्ष्मण धामी जी कोटिशः आभार एवं धन्यवाद
आ. भाई विमल जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहब
।
जनाब विमल शर्मा 'विमल' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'प्रेम हम तुम पर लुटाने आ गये।
आज फिर तुमको सताने आ गये'
इस मतले के ऊला में 'तुम' और सानी में 'तुमको' शब्द उचित नहीं,बहतर होगा सानी में 'तुमको' की जगह "देखो" कर लें।
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