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ग़ज़ल- रूह के पार ले जाती रही

212 212 212 212

1

एक आवाज़ कानों में आती रही

रूह के पार मुझको ले जाती रही

2

ख़्वाब आँखों को हर पल दिखाती रही

ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही

3

रूह लफ़्ज़ों में ढल कागज़ों पर उतर

बज़्म में आह-ओ-नाले सुनाती रही

4

उसने छोड़ा मुझे ऐसे अंदाज़ से

साँस थमती रही जान जाती रही

5

ढाई आख़र की चाहत में वो रात दिन

दिल से दिल चुपके-चुपके मिलाती रही

6

सुर सजा कर लबों पर मुहब्बत भरे

रागिनी रोज़ 'निर्मल' वो गाती रही

मौलिक व अप्रकाशित

स्वरचित

रचना निर्मल

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on January 27, 2021 at 6:35pm

आदरणीय अबोध बालक जी, हौसला बढ़ाने के लिए आभार। 

Comment by Rachna Bhatia on January 27, 2021 at 6:34pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' नमस्कार। भाई बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by Rachna Bhatia on January 27, 2021 at 6:32pm

आदरणीय गुरप्रीत सिंह 'जम्मू' जी आभारी हूँ। आपने सही कहा ,सर् का मार्गदर्शन मिलना हमारी खुशकिस्मती ही है। 

Comment by Rachna Bhatia on January 27, 2021 at 6:05pm

आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। बहुत खूबसूरत आपने मतला बना दिया। सच बताऊं सर् मैंने जो सानी बदलने के लिए सोचा वह मुझे पसंद भी नहीं था। आपने मेरे पहले सानी को लेकर ही मतला बहुत अच्छा बना दिया । आपकी तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।सादर। 

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 25, 2021 at 10:21pm

गजल में आपकी सादगी का गुमां मुझको हुआ है //
लम्हा लम्हा हरफ ब हरफ बानगी से जुडा हुआ है // 
दीद का अचरज उफनता इसके पहले // 
शिष्टता ने रोक मुझको लिया है  // 

एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त 

Comment by Samar kabeer on January 25, 2021 at 7:10pm

बहुत शुक्रिय: प्रिय ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 7:07pm

रूह के पार मुझको बुलाती रही'

क्या कहने.. आ. भाई समर जी।

Comment by Samar kabeer on January 25, 2021 at 6:48pm

भाई गुरप्रीत सिंह जी आदाब, बहुत अर्से बाद ओबीओ पर आपको देख कर ख़ुशी हुई ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on January 25, 2021 at 6:31pm

/रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही//

यूँ कहें तो:-

'रूह के पार मुझको बुलाती रही

वाह वाह आदरणीय समर सर जी ।  क्या ख़ूब इस्लाह की आपने ।। obo से जुड़े सीखने वालों की खुशकिस्मती है की आप इस मंच पर उनकी रहनुमाई कर रहे हैं 

Comment by Gurpreet Singh jammu on January 25, 2021 at 6:25pm

आदरणीया रचना भाटिया जी नमस्कार। बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल का प्रयास आपकी तरफ से । पहले दोंनों अशआर बहुत पसंद आए । और कमियों के बारे में तो उस्ताद समर सर जी आपको बता ही चुके हैं 

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